Tuesday, 6 November 2018
पीली और काली हल्दी के टोटके और उपाय
आप सबने पीली हल्दी के बारे में तो सुना ही है परन्तु काली हल्दी भी पाई जाती है। काली हल्दी का प्रयोग ज्योतिष तथा तंत्र-मंत्र में विशेष रूप से किया जाता है। यह अनेकों प्रकार के बुरे टोने-टोटकों को दूर करती हमें दुर्भाग्य से बचाती है।
हल्दी के पीले रंग को बृहस्पति से जोड़ा जाता है, इसलिए ज्योतिषशास्त्र के अंतर्गत किसी जातक की कुंडली में मौजूद कमजोर बृहस्पति को मजबूती प्रदान करने के लिए हल्दी का प्रयोग किया जाता है। बृहस्पति को मजबूत करने के लिए यह एक रामबाण इलाज माना गया है। पढ़े : लाल किताब के अचूक टोटके और उपाय
काली हल्दी का प्रयोग बड़ा ही सहज है। इसके लिए केवल आपको घर से निकलने के पहले काली हल्दी का तिलक सिर पर लगाना होगा फिर आपके काम में सफलता सुनिश्चित रूप से प्राप्त होती है।
1- यदि परिवार में कोई व्यक्ति निरंतर अस्वस्थ्य रहता है, तो प्रथम गुरुवार को आटे के दो पेड़े बनाकर उसमें गीली चीने की दाल के साथ गुड़ और थोड़ी सी पिसी काली हल्दी को दबाकर रोगी व्यक्ति के ऊपर से सात बार उतार कर गाय को खिला दें। यह उपाय लगातार तीन गुरुवार करने से आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा।
2- यदि किसी व्यक्ति या बच्चे को नजर लग गई है, तो काले कपड़े में हल्दी को बांधकर 7 बार ऊपर से उतार कर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।
3- किसी की जन्मपत्रिका में गुरु और शनि दोष है , तो वह जातक यह उपाय जरुर करे – शुक्लपक्ष के प्रथम गुरुवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।
4- यदि किसी के पास धन आता है पर अनावश्यक खर्चे भी होते रहते है तो धन संचय के लिए यह टोटका काम में ले । शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिंदूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रुकने लगेगा।
5- यदि आपके व्यवसाय में निरंतर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौडि़यां बांधकर 108 बार विष्णु मंत्र ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः’ का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।
6- यदि आपका व्यवसाय मशीनों से संबंधित है और आए दिन कोई महंगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीस मशीनो पर लगाये | यदि बुरी नजर का दोष होगा तो वो दूर हो जायेगा |
7- यदि किसी को नजर दोष लगी है तो एक काले कपडे में कलि हल्दी डालकर उस व्यक्ति के सिर पर सात बार फेरे तो बहते जल में बहा दे । आराम मिलेगा |
8- गृह शांति के लिए काली हल्दी को सिद्ध करके 1 काले कपडे में बांधकर सही समय मुहूर्त में घर के मुख्य द्वार पर लटका दे |
9- दीपावली के दिन यह टोटका जरुर करे | पीले वस्त्र में काली हल्दी के साथ एक चांदी का सिक्का बाँध कर तिजोरी में रख देने से वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
10- गुरु पुष्य नक्षत्र को काली हल्दी सिन्दूर में रखकर धूप देने के बाद लाल कपड़े में लपेटकर 1-2 सिक्कों के साथ उसे तिजोरी में रख दें। धन की वृद्धि होने लगेगी।
काली हल्दी सिद्ध करने का उपाय
किसी भी अष्टमी को काली हल्दी सिद्ध कर सकते हैं। इस दिन प्रात: उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं। तत्पश्चात् काली हल्दी की गांठ को धूप-दीप देकर नमस्कार करें। फिर उगते हुए सूर्यको नमस्कार करें और 108 बार (ॐ ह्रीं सूर्याय नम:) का जाप करें। इसके बाद स्थापित काली हल्दी की पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें और फलाहार करें।
गजेन्द्र मोक्ष की पौराणिक कथा कहानी
गजेन्द्र मोक्ष की कथा कहानी
गजेंद्र मोक्ष की कथा का वर्णन श्रीमद भागवत पुराण में किया गया है। क्षीरसागर में दस हजार योजन ऊँचा त्रिकुट नाम का पर्वत था। उस पर्वत के घोर जंगल में बहुत-सी हथिनियों के साथ एक गजेन्द्र (हाथी) निवास करता था। वह सभी हाथियों का सरदार था। एक दिन वह उसी पर्वत पर अपनी हथिनियों के साथ बड़ी-बड़ी झाड़ियों और पेड़ों को रौंदता हुआ घूम रहा था। उसके पीछे-पीछे हाथियों के छोटे-छोटे बच्चे तथा हथिनियाँ घूम रही थी ।
बड़े जोर की धुप के कारण उसे तथा उसके साथियों को प्यास लगी । तब वह अपने समूह के साथ पास के सरोवर से पाने पी कर अपनी प्यास बुझाने लगा। प्यास बुझाने के बाद वे सभी साथियों के साथ जल- स्नान कर जल- क्रीड़ा करने लगे । उसी समय एक बलवान मगरमच्छ ने उस गजराज के पैर को मुँह मे दबोच कर पाने के अंदर खीचने लगा । गजेंद्र ने अपनी पूरी शक्ति लगा कर स्वयं को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन असफल रहा । उसके झुण्ड के साथियों ने भी उसे बचाना चाहा पर सफल ना हो सके |
जब गजेंद्र ने अपने आप को मौत के निकट पाया और कोई उपाय शेष नहीं रह गया तब उसने प्रभु की शरण ली और आर्तनाद सए प्रभु की सतुति करने लगा। जिसे सुनकर भगवान श्री हरि स्वयं आकर उसके प्राणों की रक्षा की ।
पूर्व जन्म कथा
जब शुकदेव जी ने राजा परिक्षित को यह कथा सुनायी तो राजा परीक्षित ने शुकदेव जी से पूछा कि हे शुकदेव महाराज ! यह गजेंद्र कौन था जिसकी पुकार सुनकर भगवान भोजन छोड़कर आ गए ।
तब शुकदेव जी महाराज कहते हैं- हे परिक्षित पूर्व जन्म में गजेंद्र का नाम इन्द्रद्युम्न था । वह द्रविड देश का पाण्ड्वंशी राजा था । वह भग्वान का बहुत बड़ा सेवक था। उसने अपना राजपाट छोड़कर मलय पर्वत पर रहते हुए जटाएँ बढाकर तपस्वी के वेष में भगवान की आराधना था। एक दिन वहाँ से अगस्त्य मुनि अपने शिष्यों के साथ गुजरे और उन्होंने राजा को एकाग्रचित होकर उपासना करते हुए देखा। अगस्त्य मुनि ने देखा कि यह राजा अपने प्राजापालन और गृहस्थोचित अतिथि सेवा आदि धर्म को छोड़कर तपस्वी की तरह रह रहा है अत: उस राजा इन्द्रद्युम्न पर क्रोधित हो गये । और क्रोध में आकर उन्होंने राजा को शाप दिया – कि हे राजा तुमने गुरुजनों से बिना शिक्षा ग्रहण किये हुए अभिमानवश परोपकार से निवृत होकर मनमानी कर रहे हो अर्थात् हाथी के समान जड़ बुद्धि हो गये इसलिये तुम्हें वही अज्ञानमयी हाथी की योनि प्राप्त हो’।
राजा ने इस श्राप को अपना प्रारब्ध समझा। इसके बाद दूसरे जन्म में उसे आत्मा की विस्मृति करा देने वाली हाथी की योनि प्राप्त हुई। परन्तु भगवान की आराधना के प्रभाव से हाथी होने पर भी उन्हें भगवान की स्मृति हो ही गयी। भगवान श्रीहरि ने इस प्रकार गजेन्द्र का उद्धार करके उसे अपना लोक में जगह दी ।
गजेंद्र को जिस ग्राह ने पकड़ा था वह पूर्व जन्म में ‘हूहू’ नाम का श्रेष्ठ गन्धर्व था। एक बार देवल ऋषि जलाशय में स्नान कर रहे थे । उसी जलाशय यह हूहू नामक गंधर्व ने चुपचाप अंदर जाकर ऋषि के पैर पकड़ लिये और मगर मगर (मगरमच्छ) कहकर चिल्लाने लगा। इससे क्रोधित होकर देवल ऋषि ने श्राप दे हूहू को श्राप देते हुए कहा –हे! हुहु गन्धर्व तुझे लाज नहीं आती। तुझे संत-महात्मा का आदर करना चाहिए और तू मजाक उड़ा रहा है। और मगर की तरह आकर मेरा पैर पकड़ता है। अरे दुष्ट! अगर तुझे मगर बनने का इतना ही शोक है तो तुझे मगर की योनि प्राप्त होगी। शाप मिलते हीं वह गंधर्व ऋषि से क्षमायाचना करने लगा । तब ऋषि ने कहा – तू मगर की योनी में जरूर जन्म लेगा लेकिन तेरा उद्धार भग्वान के हाथों होगा। इसी ग्राह रूपी हूहू गंधर्व का उद्धार भगवान श्री हरि ने किया ।
बबूल पेड़ के प्रेम से थामी कृष्ण ने बाँसुरी
बबूल पेड़ के प्रेम से थामी कृष्ण ने बाँसुरी
कृष्णा हर दिन एक बाग़ में जाया करते थे और उस बाग़ के सभी पुष्पों को प्यार किया करते थे | बदले में वे सभी पुष्प भी कृष्णा की तरफ अपना प्यार दर्शाया करते थे | उन सभी पुष्पों के चेहरों पर कृष्ण को देखकर एक मधुर मुस्कान आ जाया करती थी |
उसी बाग़ में एक बबूल का पेड़ भी था पर कृष्ण से उसे वो प्यार नही मिल पा रहा था जो अन्य सभी पुष्पों को मिल जाता था | एक दिन बबूल ने अपनी यह व्यथा उन्हें सुनाई |
कृष्णा ने कहा की तुम यदि मेरा प्यार चाहते हो तो तुम्हारे अंगो को मेरे लिए बलिदान करना होगा और ऐसा करने से तुम्हे बहुत दर्द होगा | बबूल ने कहा की प्रभु आपके लिए जीवन में दर्द सहना भी मेरे लिए परम आनदं के तुल्य है |
कृष्ण ने यह बात सुनकर मुस्कुराये और बबूल के पेड़ की एक शाखा काट दी | बबूल दर्द से बेहाल हो रहा था पर कृष्ण के हाथो के स्पर्श से उसे आनंद भी आ रहा था | कृष्ण ने उस शाखा से एक सुन्दर सी बांसुरी बना दी | बबूल के इस बलिदान के कारण कृष्ण इसे हमेशा अपने पास रखते और इसे बहुत प्यार करते |
गोपिया यह देखकर कृष्णा से बहुत नाराज होती की प्रभु इस बांसुरी में ऐसा क्या है की यह आपके साथ ही सोती है आपके साथ ही जगती है और हमेशा आपके साथ ही रहती है |
तब कृष्ण ने गोपियों से कहा की तुम यह बात इस बबूल की बांसुरी से ही पूछो |
तब बांसुरी ने कहा की मैंने तो पूर्ण रूप से अपने आप को भगवान कृष्णा को समर्प्रित कर दिया है अब यह इनके ऊपर है यह मुझे किस तरह रखते है | मैं अन्दर से बिलकुल खाली हूँ |
इस कहानी से हम्हे भी यह सीख मिलती है की प्रभु को अपना सब कुछ दे दो बस प्रभु फिर आपको अपना सब कुछ दे देंगे | और इस तरह भक्त और भगवान का एक प्यारा रिश्ता जुड़ जाता है |