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Wednesday, 7 November 2018

नरक चतुर्दशी पर ऐसे पाये सुन्दरता

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रूप चौदस पर इन उपायों से उभरेगा आपका रूप – नरक चतुर्दशी विशेष

Narak Chaturdashi Par Sundarta Paane Ke Upay In Hindi

कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुदर्शी को रूप चौदस या नरक चतुर्दशी कहते हैं।  इस पर्व के दुसरे नाम  छोटी दिवाली या काली चौदस भी  है। इस दिन की पूजा और स्नान नरक की पीडाओ से मुक्ति और काया को सौन्दर्य प्रदान करती है | यहा सुन्दरता आंतरिक और बाहरी दोनों तरफ की बताई गयी है |


कब और कैसे करे इस दिन स्नान

रुप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने का विधान है । स्नान से पहले उबटन के रूप में तिल के तेल से शरीर पर मसाज कर ले | फिर पवित्र और शुद्ध जल में अपामार्ग ( चिचड़ी ) पौधे की पत्तियाँ डाल कर स्नान करे | कहते है ऐसा करने से पापो का नाश होता है और यमराज प्रसन्न होते है | इसके बाद सौन्दर्य के देव श्री कृष्ण राधे  के मंदिर जाकर उनके दर्शन करने चाहिए  |

यमराज के लिए जलाये एक दक्षिण दिशा में चौमुखा दीपक

नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज के नाम से एक दीपक संध्या को दक्षिण दिशा में जलाकर अपने पापो के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए | यमराज के लिए निम्न मंत्र बोले :



यं यमराजाय नमः॥

एक कथा के अनुसार एक बार एक राजा ने अपने पापो के क्षमन के लिए यमदूतो से मार्ग पूछा | तब यमदूतो ने उन्हें कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व तिल का तेल लगाकर स्नान करने और यमराज के लिए  व्रत करने की बात कही | तब से इस तरह स्नान और व्रत करने की रीति नरक चतुर्दशी के दिन बन गयी |


सबसे बड़ी पतिव्रता अनुसूईया

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सबसे बड़ी पतिव्रता अनुसूईया

यह एक पौराणिक प्रसंग है जो सती अनुसूईया के चरित्र की महिमा का गुणगान करता है | सती अनुसूईया अपने पतिधर्म और पतिव्रता के लिए जानी जाती थी | तीनो लोको में उनके इस धर्म की कीर्ति का बख्यान होता था | देव ऋषि नारद जी को तो आप जानते है , अपने स्वभाव वस उन्होंने  अनुसूईया की यह महिमा बारी बारी लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सावित्री जी को बताई | अनुसूईया की ऐसी प्रशंसा सुनकर देवियों को उससे ईर्ष्या होने लगी और उन्होंने उसकी परीक्षा लेने के लिए तैयार हो गयी |


तीनो देवियाँ एक जगह मिलकर एक युक्ति बनाई जिससे पतिव्रता की परीक्षा ली जा सके | उन्होंने अपने अपने पतियों को इसमे साथ देने के मानना शुरू कर दिया | पहले तो त्रिदेवो को यह करना पाप समान लगा पर अपनी पत्नियों के हठ के सामने उन्हें झुकना पड़ा और इस कार्य के लिए तैयार हो गये |
अब तीनो देव साधु का वेश धारण करके अत्रि ऋषि के आश्रम  पहुंचे | उस समय अनुसूईया अकेली थी | साधुओ को अपने द्वार पर देख कर उन्होंने उनका अच्छे से स्वागत किया और भोजन पान करने का अनुग्रह किया | साधु के रूप में त्रिदेवो ने उसके सामने शर्त रखी की यदि वो  निवस्त्र होकर  उन्हें भोजन करवाएगी तब ही वो भोजन करेंगे |

अब यह सुनकर अनुसूईया धर्म संकट में पड़ गयी | एक तरफ साधुओ का सम्मान और एक तरफ पतिव्रता | पर जो सत्य और अच्छे होते है उन्हें राह मिल ही जाती है | ऐसा ही अनुसूईया के साथ हुआ | उसने परमेश्वर से विनती की , हे ईश्वर यदि मेरे पतिधर्म में कोई कमी ना हो तो  इन साधुओ को  छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बना दो जिससे मैं इन्हे माँ के रूप में भोजन करा सकु | ऐसा करने से मेरा पति धर्म और साधू को उनकी शर्त पर  भोजन पान दोनों पूर्ण हो जायेंगे |



परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया।

यह सब तीनो देवियाँ देख रही थी | अनुसूईया ने जिस तरह परीक्षा दी और अपने पतिव्रता धर्म का पालन किया , यह उन तीनो के लिए महान था | तीनो देवियों ने अनुसूईया के आश्रम आकर दर्शन दिए और उनसे ईर्ष्यावश जो परीक्षा ली उसके लिए माफ़ी मांगी | तीनो शिशु भी त्रिदेव ब्रह्मा ,विष्णु , महेश  के रूप में आकर अनुसूईया के धर्म की जय जयकार करने लग गये | उन सभी ने उसे आशीष दिया की जब जब पतिव्रता धर्म की बात की जाएगी अनुसूईया का नाम उस धर्म में हमेशा अमर रहेगा |


16 संस्कार सनातन हिन्दू धर्म

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16 संस्कार सनातन हिन्दू धर्म


हम्हारे हिन्दू धर्म में समाजहित के लिए 16 संस्कार बताये गये है | इनका पालन हम्हे करना चाहिए | इसने पीछे भौतिक , आध्यात्मिक , सांसारिक और शारीरिक शक्तियाँ विद्यमान होती है |
1. गर्भाधान संस्कार ( Garbhaadhan Sanskar) – गर्भ में पलने वाला शिशु योग्य , स्वस्थ और गुणशाली हो , इस अभिलाषा से किया जाने वाला संस्कार गर्भधारण संस्कार कहलाता है | इसी से वंश आगे बढ़ता है |
2. पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar) – गर्भस्थ शिशु के चहुमुखी विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है | शिशु के अच्छे मानसिक और शारीरिक शक्ति के लिए यह किया जाता है |
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार ( Simanta Sanskar) – गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में यह संस्कार दिया जाता है । इस अवस्था तक बच्चा हल्का सिखने योग्य हो जाता है | इस संस्कार से उसके अच्छे व्यवहार , नैतिक मूल्य ,धर्म हेतू यह किया जाता है |
4. जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar) – बालक का जन्म होते वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ शिशु को शहद और घी चटाया जाता है ताकि बच्चा स्वस्थ और दीर्घायु हो।



5. नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar)- शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन ब्राहमण द्वारा उसके जन्म समय तारीख और जन्म स्थान से कुंडली देखकर शिशु को नाम दिया जाता है |
6. निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar) – निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। यह पञ्च जगत शक्तियों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ) से विनती की जाती है की नवजात बच्चे को शक्ति और सुरक्षा प्रदान करे जिससे बच्चा स्वस्थ ,निरोगी और लम्बी उम्र का हो ।
7. अन्नप्राशन संस्कार ( Annaprashana) – जब बच्चा 6 या 7 माह का हो जाता है और उसके दाँत निकलना प्रारंभ हो जाते है तो फिर यह संस्कार दिया जाता है और उसके बाद उसे अन्न खिलाना शुरू कर देते है |
8. मुंडन संस्कार ( Mundan Sanskar)- जब शिशु की आयु एक वर्ष हो जाती है तब या तीन वर्ष की आयु में या पांचवे या सातवे वर्ष की आयु में बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार से बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। साथ ही शिशु के बालों में चिपके कीटाणु नष्ट होते हैं जिससे शिशु को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
9. विद्या आरंभ संस्कार ( Vidhya Arambha Sanskar )- यह संस्कार विद्या प्राप्ति से पूर्व शिशु को दिया जाता है |

10. कर्णवेध संस्कार ( Karnavedh Sanskar) – इस संस्कार में कान छेदे जाते है । इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। कान छेड़ने से सिर तक जाने वाली नसों में रक्त प्रवाह अच्छी तरह होता है जिससे सुनने की शक्ति और अच्छी हो जाती है |



11. उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar) – उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। यह जनेऊ धारण करने का संस्कार है जो गुरु द्वारा पहनाई जाती है | जनेऊ में तीन सूत्र तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक माने जाते हैं। इससे पहने से इन त्रिदेवो की विशेष कृपा प्राप्त होती है |

12. वेदारंभ संस्कार (Vedaramba Sanskar) – इसमे वेदों का ज्ञान करवाया जाता है |
13. केशांत संस्कार (Keshant Sanskar) – केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना| यह संस्कार विद्या प्राप्ति से पहले किया जाता है जो विद्या अर्जित करने में सहयोगी है | सिर पर एक शिखा रखकर बाकि सिर का मुंडन कर दिया जाता है |
14. समावर्तन संस्कार (Samavartan Sanskar)- समावर्तन संस्कार अर्थ है पुनः लौटना।
पहले शिक्षार्थी गुरुकुल में जाकर शिक्षा लेते थे और उसी जगह रहा करते थे | जब शिक्षा पूर्ण हो जाती थी तब पुनः अपने घर लौटकर उस शिक्षा को जीवन और समाज के हित में काम लेते थे यही घर लौटने का संस्कार ही समावर्तन संस्कार कहलाता है |



15. विवाह संस्कार ( Vivah Sanskar) – विवाह संस्कार में वर वधू अग्नि को साक्षी मानकर धर्म की राह में एक दुसरे का साथ देते हुए जीवन व्यतीत करने की राह अपनानाते है | बहुत सारे संस्कार इस संस्कार के बाद ही किया जा सकते है | यह पितृऋण से मुक्त कराने वाला संस्कार है |
16. अंत्येष्टि संस्कार (Antyesti Sanskar)- अंत्येष्टि संस्कार जीवन का अंतिम संस्कार है । अपनी मृत्यु के बाद अपने शरीर को पवित्र अग्नि में समर्प्रित कर दिया जाता है |