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Thursday, 8 November 2018

एक कौरव जो महाभारत युद्ध में पांडवो पक्ष से लड़ाई करि

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गांधारी पुत्र  वरदान प्राप्त था परन्तु  उसका  यह वरदान उसे एक असामन्य रूप से  फलित हुआ। उसे प्रसव उपरांत  एक मांस के निर्जीव टुकड़े को जन्म दिया।  जिसे बाद मे 100  बराबर टुकड़ो  मे बाँट कर मिटटी के घडो में भर दिया गया  और एक छोटे टुकड़े को अलग से  छोटी घड़े मे रखा गया।  100  घडो से 100  पुत्र और एक छोटे घड़े से पुत्री दुशाला का जन्म हुआ।   लगभग दो वर्षों के दौरान, उनकी इच्छाएं असामान्य तरीके से पूरी हुईं।
कौरव जो की अधर्मी थे परन्तु उनके वंश में भी कुछ धार्मिक व्यक्ति भी थे, जिनकी भलाई  छायांकित हुई और बुराई को पार कर गई ।
युयुत्सु एक ऐसे  पात्र  थे, उन्हें  अच्छे और बुरे का अच्छा ज्ञान था। उन्होंने अपनी चेतना को कभी धोखा नहीं दिया और जहां प्रकाश था वहां रहे। वह धृतराष्ट्र के 102 बच्चों में से एक थे
एक लोकप्रिय धारणा के अनुसार , धृतराष्ट्र के 100 से अधिक बच्चे थे। इस कौरव के जन्म की कहानी खुद के रूप में अद्वितीय है। युयुत्सू भी कोरवो की तरह ही धृतराष्ट्र के पुत्र थे।   जब गांधारी के द्वारा पैदा किये गए मांस पिंड को मिटटी घडो में बंद कर दिया गया था तब धृतराष्ट्र को मन मे असंतोष  शंका उत्पन्न हो गई हो के यदि गांधारी   उन्हें पुत्र  न दे पायी तो उनका वंश बिना पुत्र के समाप्त न हो जाए। तो एक भयभीत धृतराष्ट्र ने सुगाधा नामक वैश्य दासी के साथ एक बच्चा पैदा किया, और इसी तरह युयुत्सू पैदा हुआ। उनका जन्म उसी दिन उनके 100 कुरु भाइयों और बहन दुहसाला के रूप में हुआ था।
जबकि कौरवों का एक छोटे बालक थे तब वह बुरी सांगत के प्रभाव से गलत और अनैतिक कार्य करने लग गए थे कित्नु  युयुत्सु थोड़ा अलग था  और वह कभी भी अनैतिक कार्य नहीं करते थे ।
चूंकि महाभारत को धार्मिक युद्ध कहा जाता था, इसलिए किसी भी नेता , राजा और व्यक्ति को दोनों पक्षों (पांडवों और कौरवों) को किसी भी पक्ष की शामिल होने की पूर्ण स्वतंत्रता थी।  युयुत्सू कौरवों की नीचता और बुराई को जानते थे  अतः वह समझते थे उन्हें किनका साथ देना चाहिए।  उन्होंने  बहुत बुद्धिमानी से  सब निर्णय किया। 
वह पांडवों के लिए एक सूचनार्थी बन गए और अनेक गुप्त सूचनाएं पांडवो को दी तथा  भीम के जीवन को भी बचाया।
उन्होंने उन्हें दुर्योधन की चालाक साजिश और योजनाओं के आसपास केंद्रित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की, जिससे पांडवों को काफी मदद मिली। उन्होंने उन्हें मदद की एक महत्वपूर्ण तरीका निश्चित रूप से भीम के जीवन को बचाने की है। कई दुर्योधन की बुरी योजनाओं में से एक भी भीमा को मारने के लिए पानी की जहर शामिल थी; एक योजना जो काम नहीं कर पाई, यूयुत्सु ने पांडवों को इसके बारे में चिंतित करने के लिए धन्यवाद।
उन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध की शुरुआत से पहले पांडवों के साथ देने का निर्णय लिया।  
एक साथ 60,000 योद्धाओं से लड़ने की क्षमता को संभालने के बाद, वह कौरवों के बीच अतीराथीस में से एक थे। लेकिन, उन्होंने दाहिनी ओर दाएं से लड़ने का फैसला किया, और इसलिए, पांडवों के पक्ष से कुरुक्षेत्र युद्ध में हिस्सा लिया।
उनकी विचारधाराओं ने फल पैदा किया और अंत में, वह हस्तीनापुर के मंत्री  बने।
युयुत्सु उन 11 योद्धाओ में से एक था जो युद्ध से जीवित बचने में कामयाब रहे।


महाभारत के दो सबसे शक्तिशाली कित्नु सबसे अपमानित पात्र

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महाभारत में दो पात्र हैं जिन्हें बिना किसी  किसी भी गलती के भी सदैव अपमान   तिरस्कार प्राप्त हुआ। 

एक है द्रौपदी । उसके पास पांच पति  थे - फिर भी रक्षा के लिए कोई नहीं, उसके पांच बेटे थे - फिर भी युद्ध समाप्ति के बाद कोई भी जीवित नहीं।  द्रौपदी एक राजकुमारी , जिसके पिता ने सदैव द्रोपदी का इस वजह से तिरस्कार किया क्युकी वह एक पुत्र चाहते थे परन्तु उन्हें द्रोपदी के रूप में  कन्या प्राप्त हुई।  

 दूसरा कर्ण है। वह कभी भी अपने भाइयों के लिए भाई नहीं था और कुंती के सबसे बड़े बेटे होने के बावजूद एक सूत  के पुत्र होने के लिए उसे द्रौपदी के स्वयंवर  में द्रौपदी द्वारा अपमानित किया गया था। कर्ण के कवच भी कृष्णा द्वारा छल से ले लिए गए।  और छल से ही कर्ण को मारा गया। 

द्रौपदी एक अतयंत सुन्दर राजकुमारी थी  जिस के कारन प्रत्येक राजकुमार और राजा उस से विवाह करना चाहता था। द्रोपदी के भरी सभा मे सभी बड़े बुजुर्ग , गुरु और पिता समान व्यक्तियों के आगे अपमानित किया गया और उसे निर्वस्त्र  करने की कोशिश की गई।  यह सब उसके पतियों की  आँखों के सामने हुआ कित्नु वह कुछ न कर सके।  उनमे से एक भी द्रोपदी के मान और सम्म्मान के लिए न  सका न शास्त्र उठा सका।  अतयंत सुन्दर, राजकुमारी, होने के बाद भी भरी राजसभा मे  ऐसा अपमान। 


कर्ण, जिसका जन्म कुंती ने दिया परन्तु लोक लाज के डर से उस जीवित पुत्र को नदी मे  बहा दिया।  कारण जिसे सर्व शक्तिशाली ब्रह्माश्त्र की विद्या  गुरु परशुराम द्वारा प्रदान की गई परन्तु साथ ही परशुराम ने उसे श्राप भी दे दिया के यह विद्या मुसीबत के वक्त उसे  याद नहीं आएगी।  सूर्य पुत्र होने के कारन उसे सूर्य द्वारा कवच और कुण्डल प्राप्त हुए लेकिन इंद्रा ने छल द्वारा यह उस से ले लिए।  कारण जो के  दानवीर था परन्तु इसी दान शीलता को कर्ण की कमजोरी बनाकर इंद्रा ने साधु के वेश मे आकर उस से यह कवच और कुण्डल दान मे मांग लिए। पांचो पांडवो से अधिक शक्तिशाली और समर्थ होने के बावजूद उसे द्रोपदी ने स्वयंवर में  सूत पुत्र कहकर प्रतियोगिता से बाहर कर दिया।  

 वास्तव मे इन्ही दो पात्रो का अपमान और हीनभावना ही महाभारत की युद्ध की मुख्या वजह बानी।  

इस कथा के बाद स्त्री चाहेगी के उसे दुर्योधन जैसा पति मिले

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कर्ण के अंग देश का राजा बनने पश्चात्  अपना अधिकांश समय दुर्योधन के साथ बिताया। वे ज्यादातर शाम को दुर्योधन के साथ चौसर का खेल खेलते थे ।  एक दिन सूर्यास्त के बाद, दुर्योधन को क्षणिक रूप से कही जाना पड़ा। भाग्यवश उनकी पत्नी भानुमती, जो उस वक्त वही से गुज़र रही थी उसने देखा के कर्ण चौसर के समीप बैठा है और दुर्योधन के वापिस लौटने की प्रतीक्षा कर  रहे है।  इसे मई उसके मन मै ख्याल आया के क्यों न वह अपने पति दुर्योधन के तरफ से खेल खेलना जारी कर दे।  और जैसे ही उसने चौसर खेलने के इच्छा व्यक्त करि वैसे ही कर्ण ने भानुमति को सहमति प्रदान करि और खेल खेलना पुनः शुरू कर दिया। 

अचानक खेल खेल मैं किसी बिंदु पर उनके बीच  एक अनौपचारिक झगड़ा होने लगा और दोनों ही स्वयं को सही कह कर बहस करने लगे। इसी बहस के बीच कर्ण ने पासा को भानुमति के हाथ से छीनने की कोशिश की। पर अचानक से पैसा छीनने की कोशिश मे  भानुमती की चुनरी नीचे गिर गई और साथ ही भानुमति के गले का हार ( मोती का हार ) टूट गया। पुरे फर्श पर हर जगह मोती बिखर गए । 
उसी पल अचानक दुर्योधन ने कक्ष में प्रवेश किया और उसने अपनी पत्नी को अर्ध वस्त्र में तथा अपने प्रिये मित्र कर्ण को अपनी पत्नी  के साथ संदेहस्पदाक स्थिति मे देखा।  यु अचानक दुर्योधन को सामने देखकर भानुमति और कर्ण दोनों ही खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगे के जैसे मानो अभी दुर्योधन दोनों को दण्डित करेगा। उस वक्त भानुमति और कर्ण के वस्त्र आपस मे  उलझे हुए थे और फर्श पर चारो तरफ मोती ही मोती बिखरे हुए थे। 
 
दुर्योधन दोनों के चेहरों पर घबराहट और शर्मिंदगी अचे से देख रहा था  परन्तु उसने स्थिति को हलके से लिया और माहौल  हुए पूछा के क्या हुआ आप दोनों आपस मे  क्यों लड़ रहे थे।  कारण जानने के बाद उन्होंने एक मजाक उड़ाया और जोर से हँसे और कहा के वह दोनों खेलना जारी रखे यदि उसे मालूम होता के आप दोनों  उपस्थिति मई खेलना ही चोर देंगे तो वह बिना बताये कक्ष मे नहीं आता। 

बाद में, जब भानुमती ने दुर्योधन से पूछा कि उन्हें संदेह क्यों नहीं था, उन्होंने जवाब दिया, "एक संबंध में संदेह के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि जब संदेह होता है तो कोई संबंध नहीं होगा। कर्ण मेरा सबसे अच्छा दोस्त है और तुम मेरी अर्धांगिनी ,  मैं उस पर भरोसा करता हूं  और तुम पर भी।  तथा मुझे पूर्ण विशवास है के तुम दोनों मेरा विश्वास कभी नहीं तोड़ोगे।