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Sunday, 11 November 2018

श्रीमद्भगवद पुराण में वर्णित कलयुग की भविष्यवाणी

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श्रीमद्भगवद पुराण हिन्दू धर्म के पुराणों में से एक है। भगवद पुराण में कलयुग के बारे में भविष्यवाणी पहले ही कर दी गयी थी अर्थात कलयुग में क्या होगा यह पहले ही भगवद पुराण में लिखा जा चुका था।

आइए जानते हैं भगवद पुराण में की जाने वाली कलयुग की भविष्यवाणी के बारे में।



धर्म, स्वच्छता, दया, जीवन की अवधि, शारीरिक शक्ति, स्मृति तथा सत्यवादिता दिन ब दिन घटती जाएगी।

जिस के पास जितना धन होगा वह उतना ही गुणी माना जायेगा।



कलयुग में ब्राह्मण धर्म के नाम पर केवल एक धागा पहनेगा जबकि पहले ब्राह्मण अपने शरीर पर और भी बहुत चीजे पहनता था।



कानून तथा न्याय केवल एक शक्ति के आधार पर लागू किया जायेगा।

व्यापार में सफलता छल पर निर्भर करेगी।

गरीब व्यक्ति को अधर्मी तथा अपवित्र माना जायेगा।

इस युग में स्त्री तथा पुरुष साथ-साथ रहेंगे।

चालाक और स्वार्थी व्यक्ति को इस युग में विद्वान माना जायेगा।


कलयुग में जो विवाह होगा वह दो लोगों के बीच में बस एक समझौता मात्र होगा।

जीवन का मुख्य लक्ष्य केवल पेट भरना ही होगा।

ऐसा माना जायेगा कि लोगों की सुंदरता उनके बालों से होगी।

लोग सत्ता हासिल करने के लिए एक दूसरे को मारने तक की हद तक पहुँच जायेंगे।


अपनी अंतरआत्मा को स्वच्छ करने के लिए लोग केवल स्नान करना ही पर्याप्त समझेंगे।

पृथ्वी भ्रष्ट लोगों से भर जाएगी।

अकाल और अत्याधिक करों द्वारा परेशान, लोग पत्ते, जड़, मांस, जंगली शहद, फल, फूल और बीज खाने को मजबूर हो जाएंगे। भयंकर सूखा पड़ेगा।

ठंड, हवा, गर्मी, बारिश और बर्फ यह सब लोगों को बहुत परेशान करेंगे


फर्श पर बैठकर क्यों नहीं करे पूजा

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फर्श पर बैठकर न करें कभी पूजा

हिन्दू धर्म में घरों में मंदिर पर विशेष ध्यान दिया जाता है| परन्तु केवल घर में मंदिर बनाना ही पर्याप्त नहीं है| हमें घर के मंदिर में बहुत सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है| अक्सर लोग अधिकतर दिशा और खुली जगह देखकर उस स्थान को पूजाघर में बदल देते हैं| यह एक गलत निर्णय है| घर में मंदिर की दिशा घर में शुभ अथवा अशुभ फल दे सकती है|

घर में मंदिर बनाते समय दिशा का ध्यान अवश्य रखें| घर में पूर्व दिशा में मंदिर बनाना बहुत शुभ होता है| माना जाता है कि सूर्य पूर्व दिशा की ओर से उगता है और इसी दिशा से सृष्टि पर रोशनी आती है| इसलिए घर में मंदिर बनाते समय पूर्व दिशा को प्राथमिकता दें| भूलकर भी दक्षिण दिशा को पूजा घर नहीं बनाना चाहिए|



पूजा करते समय आपका चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए| माना जाता है कि घर की उत्तर पूर्व दिशा भगवान का स्थान होती है|

घर में एक ही जगह पर पूजा होनी चाहिए| कई बार अपने- अपने कमरें में भी परिवार के सदस्यों द्वारा मंदिर बना लिए जाते हैं| परन्तु घर में एक से अधिक पूजा घर होना अशुभ माना जाता है| ध्यान रखें कि घर के विभिन्न स्थानों पर भी देवी- देवताओं की तस्वीर लगाने से बचें|


घर में पूजा घर को फर्श से ऊँचा रखें| इस बात का ध्यान रखें कि पूजा घर की दीवार हमेशा आम फर्श से ऊपर होनी चाहिए|

पूजा करते समय ध्यान रखें कि जमीन पर खड़ें होकर या बैठकर पूजा ना करें| ऐसे पूजा करना अशुभ माना जाता है| इसलिए आसन पर ही बैठकर या खड़े होकर पूजा करें|


माता सीता ने केवल एक ही पुत्र को जन्म दिया था

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एक ही संतान को जन्म दिया था माता सीता ने

रामायण का सही वर्णन महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गयी वाल्मीकि रामायण में ही मिलता है| कई ऋषियों ने रामायण को अपने तरीके से लिखने की कोशिश की और फलस्वरूप इसके कई संस्करण बन गए जिसमे कुछ चीज़े तो वाल्मीकि रामायण से मेल खाती थीं परन्तु कुछ प्रसंगों का रूप बदल गया|




वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता ने एक ही पुत्र को जन्म दिया था लेकिन कई ऋषियों के द्वारा लिखी गयी रामायण में सीता जी के द्वारा दो पुत्रो के जन्म का उल्लेख किया गया है| तो आइए जानते हैं लव कुश के जन्म की कहानी:-

रामायण काल में जब श्री राम सीता जी और लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास भोग कर अयोध्या लोटे तब अयोध्या नगरी में हर्ष और उल्लास का माहौल बन गया| कुछ दिनों बाद पता चलने पर कि श्री राम और सीता जी माता-पिता बनने वाले हैं, हर ओर खुशियाँ फैल गयी| परन्तु इन खुशियों पर जल्द ही नज़र लग गयी|


प्रजा में बातें बनने लगी कि माता सीता पति से दूर लंका में इतना समय काट कर आई हैं फिर भी महल में सुखी जीवन व्यतीत कर रही हैं जबकि उस वक़्त अगर कोई स्त्री एक रात भी अपने पति से दूर रहती थी तो उसे वापिस घर नहीं आने दिया जाता था| इन सब के चलते उनके गर्भवती होने पर भी सवाल उठने लगे|




समय चलते यह बात महल में पहुंच गयी और माता सीता ने निर्णय लिया कि वह अयोध्या छोड़ देंगी और सन्यास ले लेंगी| लक्ष्मण उन्हें वन तक छोड़ कर आए और वहां महर्षि वाल्मीकि उन्हें उनके आश्रम ले गए और सलाह दी की सभी बातें भूल कर सामान्य जीवन जीने की कोशिश करें| कहा जाता है कि सीता जी के अयोध्या छोड़ देने के बाद श्रीराम ने राज्य तो बखूबी संभाला, लेकिन वे अंदर से दुखी रहने लगे।


वह समय समीप आ रहा था जब माता सीता अपनी संतान को जन्म देने वाली थी| कुछ दिन बाद माता सीता ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया, जिसका नाम लव रखा गया| सीता जी ने अपना सारा समय शिशु की देखभाल में लगा दिया|




फिर एक दिन सीता जी को आश्रम के बाहर कुछ लकडियां लेने जाना था तो उन्होंने महर्षि वाल्मीकि को लव पर ध्यान देने को कहा| परन्तु सीता माता ने पाया कि महर्षि का ध्यान किसी अन्य कार्य में है तो वह लव को साथ लेकर जंगल की ओर चली गयी|

इतने में महर्षि का ध्यान बच्चे की ओर गया तो वह बच्चे को न पाकर चिंतित हो गए| उन्हें डर था वे सीता जी को क्या उत्तर देंगे| तभी उन्होंने अपने पास पड़े कुशा (घास) को लिया और कुछ मंत्र पढ़े जिससे उन्होंने नया लव बना दिया|


जब उन्होंने माता सीता को आते हुए देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए| उन्होंने माता सीता के साथ बालक लव को भी देखा और महर्षि ने सीता जी से लव को ले जाने के बारे में पूछा| महर्षि ने सारी कहानी सीता जी को बताई तो वह नए लव को देख बहुत खुश हुई|

नए लव का नाम कुशा के कारण कुश पड़ा और वह माता सीता और श्री राम के दूसरे पुत्र के रूप में जाना गया|