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Monday, 12 November 2018

सीता कौन थी और वो क्यूँ रावण की मृत्यु का कारण बनी ?

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सीता कौन थी और वो क्यूँ रावण की मृत्यु का कारण बनी ?

असल में सीता रावण और मंदोदरी की बेटी थी, इसके पीछे बहुत बड़ा कारण थी वेदवती . सीता वेदवती का पुनर्जन्म जन्म थी .वेदवती एक बहुत सुंदर, सुशिल धार्मिक कन्या थी, जो कि भगवान विष्णु की उपासक थी और उन्ही से विवाह करना चाहती थी. अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए वेदवती ने कठिन तपस्या की. उसने सांसारिक जीवन छोड़ स्वयं को तपस्या में लीन कर दिया था. वेदवती उपवन में कुटिया बनाकर रहने लगी .



एक दिन वेदवती उपवन में तपस्या कर रही थी . तब ही रावण वहां से निकला और वेदवती के स्वरूप को देख उस पर मोहित हो गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा, जिस कारण वेदवती ने हवन कुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया और वेदवती ने ही मरने से पूर्व रावण को श्राप दिया, कि वो खुद रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेगी और रावण की मृत्यु का कारण बनेगी .

कुछ समय बाद रावण को मंदोदरी से एक पुत्री प्राप्त हुई, जिसे उसने जन्म लेते ही सागर में फेंक दिया.सागर में डूबती वह कन्या सागर की देवी वरुणी को मिली और वरुणी ने उसे धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया और देवी पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया, जिसके बाद वह कन्या सीता के रूप में जानी गई और बाद में इसी सीता के अपहरण के कारण भगवान राम ने रावण का वध व लंका का दहन किया .

जिस तरह सीता मैया धरती से प्रकट हुई थी , उसी प्रकार वह धरती में समा गई थी . रावण के संहार के बाद , जब राम अयोध्या पहुंचे , तब उन्हें किन्ही कारणों से सीता का त्याग करना पड़ा . उस समय सीता ने अपना जीवन वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में व्यतीत किया और दो सुंदर राजकुमार लव कुश को जन्म दिया . राम इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनकी दो अतिबलशाली संतान हैं . जब राम ने अश्वमेध यज्ञ के लिये अपने अश्व को छोड़ा , तब इन दोनों राजकुमारों ने उस अश्व को पकड़ लिया और कहा कि अपने राजा को बोलो कि हमसे युद्ध करे . लव कुश भी अपने जन्म के रहस्य को नहीं जानते थे . लव कुश के साथ हनुमान जैसे सभी योद्धाओं ने युद्ध किया लेकिन कोई उन से जीत नहीं पाया . तब आखरी में राम वहाँ आये , तब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि यह दोनों दिव्य बालक उनकी और सीता की संतान हैं . तब सीता को वापस अयोध्या आने को कहा गया . तब सीता अयोध्या की भरी सभा में गई और उन्होंने धरती माँ का आव्हाहन किया और लव कुश को पिता को सौंप . स्वयं को धरती माँ को सौंप दिया . इस प्रकार जिस प्रकार दिव्य जन्म के साथ सीता मैया प्रकट हुई, उसी तरह से वो धरती में समां गई .


श्रीराम की बहन शांता की अन्य कथाये

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कुछ लोग मानते थे कि राजा दशरथ ने शां‍ता को सिर्फ इसलिए गोद दे दिया था, क्‍योंकि वह लड़की होने की वजह से उनकी उत्‍तराधिकारी नहीं बन सकती थीं।

शान्ता का विवाह किससे हुआ


शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था।

एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। अपने भक्‍त की बेइज्‍जती पर गुस्‍साए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्‍न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शां‍ता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।


जब दशरथ ने पुत्र की कामना से जब बुलाया अपने दामाद को


राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।

दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया।

पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। लेकिन...

शांता के आने से हुई अयोध्या में वर्षा,


दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।

लेकिन जब पुत्र की कामना से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के दौरान उन्‍होंने अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शां‍ता के बिना आने से इंकार कर दिया।

तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।' जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि 'वो उनकी पुत्री शांता है।' दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था।

दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ।


यज्ञ कराने से ऋंग ऋषि का पुण्य नष्ट हो गया तब उन्होंने क्या किया


कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे।
रामायण में क्यों नहो शांता का चित्र


जनता के समक्ष शान्ता ने कभी भी किसी को नहीं पता चलने दिया कि वो राजा दशरथ और कौशल्‍या की पुत्री हैं। यही कारण है कि रामायण या रामचरित मानस में उनका खास उल्लेख नहीं मिलता है।



कहते हैं कि जीवनभर शांता राह देखती रही अपने भाइयों की कि वे कभी तो उससे मिलने आएंगे, पर कोई नहीं गया उसका हाल-चाल जानने। मर्यादा पुरुषोत्तम भी नहीं, शायद वे भी रामराज्‍य में अकाल पड़ने से डरते थे।

कहते हैं कि वन जाते समय भगवान राम अपनी बहन के आश्रम के पास से भी गुजरे थे। तनिक रुक जाते और बहन को दर्शन ही दे देते। बिन बुलाए आने को राजी नहीं थी शांता। सती माता की कथा सुन चुकी थी बचपन में, दशरथ से।

ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत की अग्रज वंशज बने

श्रीराम की बहन शांता की दूसरी कथा

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एक अन्य लोककथा के अनुसार शांता जब पैदा हुई, तब अयोध्‍या में अकाल पड़ा और 12 वर्षों तक धरती धूल-धूल हो गई। चिंतित राजा को सलाह दी गई कि उनकी पुत्री शां‍ता ही अकाल का कारण है। राजा दशरथ ने अकाल दूर करने के लिए अपनी पुत्री शांता को वर्षिणी को दान कर दिया। उसके बाद शां‍ता कभी अयोध्‍या नहीं आई। कहते हैं कि दशरथ उसे अयोध्या बुलाने से डरते थे इसलिए कि कहीं फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।