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Thursday, 30 November 2017

शनि अमावस्या

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श्री शनिदेव भाग्यविधाता, न्याय के देवता हैं, शनि अमावस्या को किये गए उपाय सफलता प्राप्त करने एवं ग्रहों के दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होते है।


शनि अमावस्या (Shani Amavasya) का ज्योतिष एवं तन्त्र शास्त्र में बहुत महत्व है। इस दिन किये गए उपायों से शनि देव (Shani Dev) प्रसन्न होते है ।

शनिवार की अमावस्या पर पड़ने वाले इस श्रेष्ठ संयोग में किये गए उपायों से ना केवल शनि देव की (Shani Dev) ही कृपा प्राप्त होगी वरन शनि अथवा कुंडली के किसी भी ग्रह के अशुभ प्रभावों में निश्चय ही कमी आएगी ।

वैसे तो सभी लोगो को शनि अमावस्या (Shani Amavasya) को उपाय करने चाहिए लेकिन जो लोग शनि की साढ़ेसाती (Shani ki Sade Sati) और ढैय्या से पीड़ित हैं उन्हें तो शनिश्चरी अमावस्या पर विशेष उपाय अवश्य ही करने चाहिए।

पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनि देव का आवाहन और उनके दर्शन करे ।


श्री शनिदेव का आह्वान करने के लिए हाथ में नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत व जल लेकर इस मंत्र अदभुद वैदिक मंत्र का जाप करते हुए प्रार्थना करें-

"ह्रीं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायार्मात्ताण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्"।।

ह्रीं बीजमय, नीलांजन सदृश आभा वाले, रविपुत्र, यम के अग्रज, छाया मार्तण्ड स्वरूप उन शनि को मैं प्रणाम करता हूं और मैं आपका आह्वान करता हूँ॥


शनि अमावस्या (Shani Amavasya) के दिन प्रात: जल में चीनी एवं काला तिल मिलाकर पीपल की जड़ में अर्पित करके सात परिक्रमा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

शनिदेव को प्रसन्न करने का सबसे अनुकूल मंत्र है --
"ॐ शं शनैश्चराय नम:।"
इस मंत्र की एक माला का जाप अवश्य करें
इस दिन आप श्री शनि देव के दर्शन जरूर करें।

शनिदेव की दशा में अनुकूल फल प्राप्ति कराने वाला मंत्र -
ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:

शनि अमावस्या के दिन बरगद के पेड की जड में गाय का कच्चा दूध चढाकर उस मिट्टी से तिलक करें। अवश्य धन प्राप्ति होगी।

उड़द की दाल की काला नमक डाल कर खिचड़ी बनाकर संध्या के समय शनि मंदिर (Shani Mandir) में जाकर भगवान शनि देव का भोग लगाएं फिर इसे प्रसाद के रूप में बाँट दें और स्वयं भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करें ।

शनि अमावस्या (Shani Amavasya) के दिन संध्या के समय पीपल के पेड़ पर सप्तधान / सात प्रकार का अनाज चढ़ाएं और सरसों या तिल के तेल का दीपक जलाएं, इससे कुंडली के ग्रहो के अशुभ फलो में कमी आती है। जीवन से अस्थिरताएँ दूर होती है ।

शनिवार के दिन काले उड़द की दाल की खिचड़ी काला नमक डाल कर खाएं इससे भी शनि दोष (Shani Dosh)के कारण होने वाले कष्टों में कमी आती है।

इस दिन मनुष्य को सरसों का तेल, उडद, काला तिल, देसी चना, कुलथी, गुड शनियंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री अपने ऊपर वार कर शनिदेव के चरणों में चढाकर शनिदेव का तैलाभिषेक करना चाहिए।
शनिश्चरी अमावस्या को सुबह या शाम शनि चालीसा का पाठ या हनुमान चालीसा (Hanumaan Chalisa), बजरंग बाण का पाठ करें।

तिल से बने पकवान, उड़द से बने पकवान गरीबों को दान करें और पक्षियों को खिलाएं .

उड़द दाल की खिचड़ी दरिद्रनारायण को दान करें।

अमावस्या की रात्रि में 8 बादाम और 8 काजल की डिब्बी काले वस्त्र में बांधकर संदूक में रखें। इससे आर्थिक संकट दूर होते हैं नौकरी, व्यापार में धनलाभ, सफलता की प्राप्ति होती है ।

शनि अमावस्या के दिन संपूर्ण श्रद्धा भाव से पवित्र करके घोडे की नाल या नाव की पेंदी की कील का छल्ला मध्यमा अंगुली में धारण करें।

शनि अमावस्या के दिन 108 बेलपत्र की माला भगवान शिव के शिवलिंग पर चढाए। साथ ही अपने गले में गौरी शंकर रुद्राक्ष 7 दानें लाल धागें में धारण करें।

जिनके ऊपर शनि की अशुभ दशा हो ऐसे जातक को मांस , मदिरा, बीडी- सिगरेट नशीला पदार्थ आदि का सेवन न करे ।

गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध क्यों माना जाता है |

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गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध क्यों माना जाता है |

  


                एक समय देवताओं  ने एक सभा का आयोजन किया ।उसमे सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया था ।सभी देवगण समय से सभा में पहुच गए ,लेकिन गणेशजी अभी तक नहीं पहुचे थे । उनका इंतजार हो रहा था, कि गणेशजी दोड़ते-दोड़ते सभा में पहुचे ।क्योकि एक तो उनकी सवारी एक बेचारा छोटा सा चूहा और गणेशजी इतने भारी भरकम । गणेशजी जी की यह दशा देखकर चंद्रमा को हँसी आ गई ।इस पर गणेशजी को गुस्सा आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया "कि आज से जी भी तुम्हें देखेगा उस पर चोरी का इल्जाम लगेगा ।अब ये सब सुनकर सारे देवता हैरान रह गये, की ऐसा कैसे हो सकता है चंद्रमा तो रोज रात में उदय होता है और रोज सब लोग इसे देखेगे तब तो सारी दुनिया ही कलंकित हो जाएगी ।
              
 अब सभी देवताओ ने मिलकर गणेशजी से प्रार्थना की "कि प्रभु अगर ऐसा हुआ तो चंद्रमा कभी उदय नहीं होगा और यदि उदय हुआ तो सारी दुनिया ही कलंकित हो जाएगी । जब गणेशजी का गुस्सा शांत हुआ तो वे बोले "कि श्राप तो वापस नहीं हो सकता लेकिन मैं इसे कम कर सकता हूँ ।भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मेरा जन्म दिन आता है 
उस दिन जो चंद्रमा को देखेगा उसे कलंक जरूर लगेगा "।
               देवताओं ने कहा ठीक है फिर पूछा "कि इससे बचने का कोई उपाय है प्रभु "।तब गणेशजी बोले "कि मेरी जन्म तिथि से पहले जो दूज तिथि आती है उस दिन चाँद के दर्शन कर लेगा उस पर इस श्राप का असर नहीं पड़ेगा "। इस प्रकार गणेशजी के श्राप की वजह से ही गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना जाता है ।

माही चौथ की कहानी

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माही चौथ व्रत विधि 
                    माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है इस को तिल कुट्टा चौथ भी कहते है । यह व्रत महिलायें अपने पति की लम्बी उम्र व स्वस्थ जीवन की कामना के लिए करती है । इस दिन कच्चे तिल को कूट कर उसमें गुड मिलाकर तिल कुट्टा बनाया जाता है फिर इससें ही कहानी सुनते है और पूजा करते है  कहानी सुनने के लिए मिट्टी से चार कोण का चोका लगाये ,चारो कोणों पर रोली से बिंदी लगाये । बीच मिट्टी या सुपारी से गणेशजी बनाकर रखे और रोली ,मोली व चावल से गणेशजी की पूजा करे ।अब पानी का कलश ,पताशा व चाँदी की अँगूठी चोके पर रखे । अपने हाथ में थोड़ा सा तिल कुट्टा ले और कहानी सुने । चौथ की कथा सुनने के बाद जो तिल कुट्टा हमने हाथ में लिया था उसे संभाल कर रख ले (क्योकि रात में हम चंद्रमा के अर्ग इसी से देगें ) । चार दाने गेहूं के लेकर गणेशजी की कहानी सुने और उसके बाद सूर्य को अर्ग दे ।जो चाँदी की अँगूठी हमने पूजा में रखी थी उसे भी अर्ग देते समय हाथ में ले लेवे ।रात चन्द्रमा के अर्ग ( जल चडाकर ) देकर बायना निकालते है जिसे अपनी सास ,ननद या अपने से बड़ा जो भी हो उसे देकर पैर छुते है उसके बाद व्रत खोला जाता है । व्रत तिल कुट्टा खाकर ही खोलते है ।
                    इसका उद्यापन भी होता है इसमें 13 सुहागन महिलाओं  को खाना खिलाया जाता है ।एक महिला को साड़ी उसपर सुहाग का सभी सामान दिया जाता है  बाकि महिलाओं  को एक ब्लाउज पीस व उस पर यथा शक्ति सुहाग का सामान रख कर दिया जाता है । कई जगह यह व्रत पुत्र के लिए भी किया जाता है ।                          
                                                माही चौथ की कहानी 
                 एक साहूकार था । उसकें  कोई संतान नही थी । एक दिन सहुकारनी ने चौथ माता  से प्रार्थना की ,कि " हे चौथ माता आप मुझे बेटा दोगी तो में आपके सवा मन (40 किलो ) तिल कुट्टा चड़ाउगी "। पहले के लोग दिल से भोले होते थे इसलिये भगवान भी उन पर जल्दी प्रसन्न हो जाते थे ।
   चौथ माता की कृपा से नवें महीने ही उसके बेटा हो जाता है । अब सहुकारनी कहती है कि "माता जब मेरा बेटा बड़ा होगा और इसकी शादी होगी तब मैं आपके दुगना तिल कुट्टा चड़ाऊँगी । बेटा बड़ा हो जाता है और उसकी शादी तय हो जाती है । लेकिन शादी के समय भी सहुकारनी चौथ माता को तिल कुट्टा चड़ाना भूल जाती है ।  तब चौथ माता ने सोचा कि ये तो मुझे भूल ही गई । इसको कुछ चमत्कार दिखाना चाहिए वरना मुझे कौन मानेगा ।
             चौथ माता ने शादी के समय उसके बेटे को फेरों में से गायब कर दिया । सब लोगो ने लडके को बहुत तलाश किया पर लड़का नही मिला क्योकि चौथ माता ने सबकी आँखों के सामने माया का पर्दा डाल दिया था ।बारात वापस लौट गई । जिस लड़की की साथ उस लड़के की शादी हो रही थी वह तालाब पर पानी भरने जाती तो उसे आवाज आती -"एक फेरा , दो फेरा ,तीन फेरा आ मेरी अध  ब्याही "। लड़की रोज इस आवाज को सुनती ,इससे वो परेशान रहने लगी ।
           उसकी माँ ने जब उसे उदास देखा तो पूछा कि "बेटी क्या बात है तू आजकल बहुत उदास दिखती है मुझे बता क्या बात है "। तब लड़की ने अपनी माँ से कहा कि "जब में पानी लेने तालाब पर जाती हूँ तो मुझे एक आवाज सुनाई देती है कि -"एक फेरा , दो फेरा ,तीन फेरा आ मेरी अध  ब्याही "। माँ ने कहा की "कल जब तुझे ये आवाज सुनाई दे तो तुम पूछना 'की तुम कॊन हो और मुझे ऐसा क्यों कहते हो , सामने आकर बात करो "।दुसरे दिन जब लडकी तालाब पर गई तो फिर उसे वो ही आवाज आई , तो उसने पूछा की "तुम कोंन  हो सामने आकर बात करो "
          तब एक लड़का उसके सामने आकर बोला की "मैं तेरा पति हूँ " ।लडकी ने कहा की "तुम तो फेरो में गायब हो गये थे "। तो लड़का बोला की " मेरी माँ ने चौथ मत से मन्नत मांगी थी की वो तिल कुट्टा चड़ाएगी ,लेकिन उसने ऐसा नही किया ,इस लिए चौथ मत ने मुझे फेरो से उठा लिया "।तब लडकी ने पुछा की "अब तुम  वापस कैसे आओगे "।लडके ने बताया की "जब मेरी माँ ,माता  के बोला हुआ पूरा कर  देगी तब मैं वापस आ जाऊँगा "।लडकी ने घर जाकर अपनी माँ को सारी  बात बताई , और बोला मुझे ससुराल जाना है ।
          लकड़ी ने ससुराल जाकर पानी सास को सारी बात बताई ,तब उसे याद आया की मैने मन्नत माँगी थी ।
तब सास और बहु दोनों ने मिलकर जितना तिल कुट्टा बोल था उससे दुगना तिल कुट्टा बनाया और बैंड - बाजा बजाते हुए चौथ माता को चडाने को लेकर गये ।
        चौथ मत ने इससे खुश होकर उसके बेटे को वापस कर दिया । सब लोग बहुत खुश होकर और लडके को लेकर घर आ गये और ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगे ।
 हे चौथ माता जैसे उसे अपनी नाराजगी दिखाई वैसे किसी को मत दिखाना और बाद में उसे ख़ुशी दी वैसे सब को देना