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Friday, 26 January 2018

तिजोरी में क्या रखे क्या ना रखे

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तिजोरी में क्या रखे क्या ना रखे 

Tijori me kya rakhe kya nahi




शास्त्रों के अनुसार धन , आभूषण को सदैव एक नियत स्थान पर तिजोरी , अलमारी आदि में रखना चाहिए । मान्यता है कि यदि तिजोरी , धन धन स्थान पर कुछ शुभ वस्तुएं रखें तो माँ लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है । इस बात का भी ध्यान रहे कि तिजोरी में ऐसा कुछ भी ना रखा जाय जिससे धन के आगमन में बाधा उत्पन्न हो । जानिए तिजोरी में क्या रखे और क्या नहीं रखना चाहिए ।

 तिजोरी ( Tijori ) में लाल रंग का कपड़ा बिछाना शुभ रहता है । तिजोरी में रोज़ सुबह शाम धूप,अगरबत्ती अवश्य दिखानी चाहिए ।

तिजोरी ( Tijori ) में शुभ यंत्र जैसे श्रीयंत्र, व्यापार वृद्धि यंत्र, महालक्ष्मी यंत्र, बीसा यंत्र या हत्था जोड़ी की लाल कपडे अथवा चाँदी की प्लेट में स्थापना करने से शुभता बनी रहती है। इन्हें रोज़ धूप अगरबत्ती अवश्य ही दिखाते रहे।

तिजोरी ( Tijori ) में पाँच कौड़ियाँ, पांच कमलगट्टे तथा 5 साबुत हल्दी की गांठें भी अवश्य रखनी चाहिए।

कुछ नोटों में चंदन का इत्र लगाकर उन्हें अपनी तिजोरी में रखे इससे तिजोरी में बरकत बनी रहती है , घर में सुख -समृद्धि बनी रहती है

मोर पंख लेकर उसमें अच्छा गुलाब का इत्र लगाएं। उसके बाद इस मोर पंख को साफ सफेद रेशमी वस्त्र में बांधकर / लपेटकर तिजोरी में रख दें, इस उपाय को करने से तिजोरी कभी भी खाली नहीं होती है।

एक मोती शंख कोे तिलक करके लाल वस्त्र में बांधकर तिजोरी में रख दें। इससे घर में धन की बरकत बनी रहेगी।


अपनी तिजोरी पर स्वास्तिक का चिन्ह भी अवश्य ही अंकित करवाएं, क्योंकि स्वास्तिक के चिन्ह से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा से घर , कारोबार में धन की कोई भी कमी नहीं रहती है ।


तिजोरी ( Tijori ) के अंदर के दरवाज़े पर शीशा जरूर लगाएं जिसमें तिजोरी खोलते समय अंदर के धन का प्रतिबिम्ब भी नज़र आता रहे, इससे वृद्धि होती है ।

सभी शुभ मुहूर्तों विशेषकर हर माह के पुष्य नक्षत्र, नवरात्री,धनतेरस, दीपावली आदि में धन स्थान की पूजा निश्चित रूप से करनी चाहिए ।

मार्गशीर्ष महीने में प्रत्येक बृहस्पतिवार और शुक्रवार को भी तिजोरी की पूजा जरूर करनी चाहिए।

Friday, 19 January 2018

मनुष्य की आयु घटाने व बढ़ाने वाले कर्म

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मनुष्य की आयु घटाने व बढ़ाने वाले कर्म



हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों के अनुसार हम मनुष्यों की आयु लगभग 100 वर्ष या उससे अधिक मानी गयी है लेकिन वर्तमान समय में हमारे रहन सहन, विचारों, कर्मों के कारण हमारी आयु में लगातार कमी आती जा रही है। हम अपनी आयु को बढ़ाने, निरोगी रहने के तमाम प्रयत्न भी करते है लेकिन ज्यादातर लोगो को इसमें असफलता ही हाथ लगती है ।

इसका प्रमुख कारण हमारे द्वारा रोज किए जाने वाले कुछ ऐसे कार्य हैं, जो शास्त्रों में बिलकुल निषेध है। महाभारत के अनुशासव पर्व में मनुष्य की आयु को घटाने व बढ़ाने वाले हमारे कर्मों के बारे में पूरे विस्तार से बताया गया है।ये महत्वपूर्ण बातें भीष्म पितामाह जी ने युधिष्ठिर जी को बताई थी।

 भीष्म पितामह के अनुसार जो व्यक्ति धर्म को नहीं मानते है नास्तिक है, कोई भी कार्य नहीं करते है, अपने गुरु और शास्त्र की आज्ञा का पालन नहीं करते है, व्यसनी, दुराचारी होते है उन मनुष्यों की आयु स्वत: कम हो जाती है। जो मनुष्य दूसरे जाति या धर्म की स्त्रियों से संसर्ग करते हैं, उनकी भी मृत्यु जल्दी होती है।

जो मनुष्य व्यर्थ में ही तिनके तोड़ता है, अपने नाखूनों को चबाता है तथा हमेशा गन्दा रहता है , उसकी भी जल्दी मृत्यु हो जाती है। जो व्यक्ति उदय, अस्त, ग्रहण एवं दिन के समय सूर्य की ओर अनावश्यक देखते है उनकी मृत्यु भी कम आयु में ही हो जाती है।यह बहुत ही छोटी छोटी बातें है जिनका हमें अवश्य ही ध्यान रखना चाहिए ।

 शास्त्रों के अनुसार हम सभी मनुष्यों को मंजन करना,नित्य क्रिया से निवृत होना, अपने बालों को संवारना, और देवताओं कि पूजा अर्चना ये सभी कार्य दिन के पहले पहर में ही अवश्य कर लेने चाहिए। जो मनुष्य सूर्योदय होने तक सोता है तथा ऐसा करने पर प्रायश्चित भी नहीं करता है,जो ये समस्त कार्य अपने निर्धारित समय पर नहीं करते, जो पक्षियों से हिंसा करते है वे भी शीघ्र ही काल के ग्रास बन सकते हैं।

शौच के समय अपने मल-मूत्र की ओर देखने वाले, अपने पैर पर पैर रखने वाले, माह कि दोनों ही पक्षों की चतुर्दशी,अष्टमी,अमावस्या व पूर्णिमा के दिन स्त्री से संसर्ग करने वाले व्यक्तियों कि अल्पायु होती है।अत: हमें इनसे अवश्य ही बचना चाहिए ।

सदैव ध्यान दें कि भूसा, कोई भी भस्म, किसी के भी बाल और मुर्दे की हड्डियों,खोपड़ी पर कभीभी न बैठें। दूसरे के नहाने में उपयोग किये हुए जल का कभी भी किसी भी रूप में प्रयोग न करें। भोजन सदैव बैठकर ही करे। जहाँ तक सम्भव हो खड़े होकर पेशाब न करें। किसी भी ,राख तथा गोशाला में भी मल, मूत्र-त्याग न करें। भीगे पैर भोजन तो करें लेकिए भीगे पैर सोए नहीं। उक्त सभी बातों का ध्यान में रखने वाला वाला मनुष्य सौ वर्षों तक जीवन धारण करता है।

जो मनुष्य सूर्य, अग्नि, गाय तथा ब्राह्णों की ओर मुंह करके और बीच रास्ते में मूत्र त्याग करते हैं, उन सब की आयु कम हो जाती है।

 मैले, टूटे और गन्दे दर्पण में मुंह देखने वाला, गर्भवती स्त्री के साथ सम्बन्ध बनाने वाला,उत्तर और पश्चिम की ओर सर करके सोने वाला, टूटी, ढीली और गन्दी खाट / पलंग पर सोने वाला, किसी कोने ,अंधेरे में पड़े पलंग, चारपाई पर सोने वाला मनुष्य कि आयु अवश्य ही कम हो जाती है।


Thursday, 18 January 2018

श्रीधनलक्ष्मीस्तोत्रम्

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श्रीधनलक्ष्मीस्तोत्रम् ॥
श्रीधनदा उवाच-
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम् ।
कृपया पार्वती प्राह शङ्करं करुणाकरम् ॥ १॥
श्रीदेव्युवाच-
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम् ।
दरिद्र-दलनोपायमञ्जसैव धनप्रदम् ॥ २॥
श्रीशिव उवाच-
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः ।
उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया ॥ ३॥
ससीतं सानुजं रामं साञ्जनेयं सहानुगम् ।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम् ॥ ४॥
धनदं श्रद्दधानानां सद्यः सुलभकारकम् ।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम ॥ ५॥
पठन्तः पाठयन्तोऽपि ब्राह्मणैरास्तिकोत्तमैः ।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता ॥ ६॥
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम् ।
प्रार्थयेत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम् ॥ ७॥
धर्मदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे ।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम् ॥ ८॥
धरामरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते ।
सुधनं धार्मिकं देहि यजमानाय सत्वरम् ॥ ९॥  var   यजनाय सुसत्वरम्
रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये ।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि ॥ १०॥  var   शशिप्रभमनोमूर्ते
आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके ।  var   सिद्धसर्वाङ्गभूषिते
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्योपशोभिते ॥ ११॥
समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते ।
(अधिकपाठ. जातरूपमणीन्द्वादि-भूषिते भूमिभूषिते ।)
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील-नीरज-लोचने ॥ १२॥
चञ्चरीकचमू-चारु-श्रीहार-कुटिलालके ।
मत्ते भगवति मातः कलकण्ठरवामृते ॥ १३॥  var   मुखामृते
हासावलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके ।
रूप-लावण्य-तारूण्य-कारूण्य-गुणभाजने ॥ १४॥
क्वणत्कङ्कणमञ्जीरे लसल्लीलाकराम्बुजे ।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधारे धरालये ॥ १५॥
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मैकसाधनम् ।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके ॥ १६॥  var   मातर्मे मावि
कृपया करुणागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे ।
वसुधे वसुधारूपे वसु-वासव-वन्दिते ॥ १७॥
धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव ।  var   यजनायैव
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशङ्करे ॥ १८॥  var   ब्रह्मण्ये ब्राह्मणे
स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम् ।
श्रीकरे शङ्करे श्रीदे प्रसीद मयि किङ्करे ॥ १९॥
पार्वतीशप्रसादेन सुरेश-किङ्करेरितम् ।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः ॥ २०॥
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम् ।
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः ॥ २१॥

॥ इति श्रीधनलक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥



Ruchi Sehgal