Jeevan dharam

Krishna sakhi is about our daily life routine, society, culture, entertainment, lifestyle.

Wednesday, 7 November 2018

क्यों कार्तिक मास को सबसे पवित्र माह

No comments :

क्यों कार्तिक मास को सबसे पवित्र माह बताया गया है ?
Importance of Kartik Month In Hinduism शास्त्रों में वर्णित है की कार्तिक मास सबसे धार्मिक और पूण्य प्राप्ति का महिना है | स्कन्द पुराण में बताया गया है कि   सभी मासों में कार्तिक मास, देवताओं में विष्णु भगवान, तीर्थों में बद्रीनारायण तीर्थ शुभ है वही पदम पुराण के अनुसार कार्तिक मास धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला है।


स्कंदपुराण के अनुसार कार्तिक मास सबसे पावन और पूण्य प्राप्ति का मास है | इस मास में 33 कोटि देवी देवताओ का सन्निकट होता है जिससे दान , तप , व्रत , स्नान आदि का पूण्य सीधे ये देवता देते है | इस मास में धार्मिक क्रियाओ का फल अक्षय प्राप्त होता है | सबसे अधिक अन्नदान का महत्व बताया गया है |

दीपावली का मुख्य त्यौहार

हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या पर मनाई जाती है | दीपावली की पौराणिक कथा में बताया गया है की श्री राम लंका विजय के बाद इस दिन अयोध्या लौटे थे | इसी दिन लक्ष्मी जी भी समुन्द्र मंथन से प्रकट हुई थी | इसके पहले के दिन धनतेरस , नरक चतुर्दशी फिर अगले दो दिन गोवर्धन पूजा और भैया दूज का पर्व आता है |


तुलसी और शालिग्राम पूजन का है अत्यंत महत्व :
कार्तिक मास में तुलसी जी और शालिग्राम की पूजा अत्यंत फल देने वाली होती है | शालिग्राम शीला का दान करने से कई यज्ञो को पूर्ण करने का फल प्राप्त होता है | इस मास में तुलसी जी का पौधा लगाकर नित्य पूजा की जानी चाहिए |

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की  देव उठनी एकादशी को तुलसी जी  शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है।

दीप दान का है महत्व :

कार्तिक मास में दीपक प्रज्ज्वलित करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है  | दीपक ज्ञान, उजाले , सकारात्मक उर्जा के साथ बुराई ,  विपत्तियों व अंधकार के विनाश का प्रतीक है। हर पूजा में अभिन्न अंग दीपक को माना गया है | इसमे अग्नि देवता का साक्षात वास बताया गया है | कृष्ण और श्री राम के लिए नगरवासियों ने इन्हे प्रज्ज्वलित कर उनकी गौरव और विजय यात्रा का स्वागत किया था |

देवताओ की दिवाली

कार्तिक मास की पूर्णिमा पर देवताओ द्वारा देव दिवाली मनाई जाती है | काशी नगरी में इस इन गंगा के घाट पर भव्य मेला भरता है | हजारो लाखो दीपक जलाकर उत्सव भव्यता के साथ भरता है | कहते है इस दिन देवता काशी नगरी में उतरते है और मेले का हिस्सा बनते है |


नरक चतुर्दशी पर ऐसे पाये सुन्दरता

No comments :

रूप चौदस पर इन उपायों से उभरेगा आपका रूप – नरक चतुर्दशी विशेष

Narak Chaturdashi Par Sundarta Paane Ke Upay In Hindi

कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुदर्शी को रूप चौदस या नरक चतुर्दशी कहते हैं।  इस पर्व के दुसरे नाम  छोटी दिवाली या काली चौदस भी  है। इस दिन की पूजा और स्नान नरक की पीडाओ से मुक्ति और काया को सौन्दर्य प्रदान करती है | यहा सुन्दरता आंतरिक और बाहरी दोनों तरफ की बताई गयी है |


कब और कैसे करे इस दिन स्नान

रुप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने का विधान है । स्नान से पहले उबटन के रूप में तिल के तेल से शरीर पर मसाज कर ले | फिर पवित्र और शुद्ध जल में अपामार्ग ( चिचड़ी ) पौधे की पत्तियाँ डाल कर स्नान करे | कहते है ऐसा करने से पापो का नाश होता है और यमराज प्रसन्न होते है | इसके बाद सौन्दर्य के देव श्री कृष्ण राधे  के मंदिर जाकर उनके दर्शन करने चाहिए  |

यमराज के लिए जलाये एक दक्षिण दिशा में चौमुखा दीपक

नरक चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज के नाम से एक दीपक संध्या को दक्षिण दिशा में जलाकर अपने पापो के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए | यमराज के लिए निम्न मंत्र बोले :



यं यमराजाय नमः॥

एक कथा के अनुसार एक बार एक राजा ने अपने पापो के क्षमन के लिए यमदूतो से मार्ग पूछा | तब यमदूतो ने उन्हें कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व तिल का तेल लगाकर स्नान करने और यमराज के लिए  व्रत करने की बात कही | तब से इस तरह स्नान और व्रत करने की रीति नरक चतुर्दशी के दिन बन गयी |


सबसे बड़ी पतिव्रता अनुसूईया

No comments :

सबसे बड़ी पतिव्रता अनुसूईया

यह एक पौराणिक प्रसंग है जो सती अनुसूईया के चरित्र की महिमा का गुणगान करता है | सती अनुसूईया अपने पतिधर्म और पतिव्रता के लिए जानी जाती थी | तीनो लोको में उनके इस धर्म की कीर्ति का बख्यान होता था | देव ऋषि नारद जी को तो आप जानते है , अपने स्वभाव वस उन्होंने  अनुसूईया की यह महिमा बारी बारी लक्ष्मी जी, पार्वती जी और सावित्री जी को बताई | अनुसूईया की ऐसी प्रशंसा सुनकर देवियों को उससे ईर्ष्या होने लगी और उन्होंने उसकी परीक्षा लेने के लिए तैयार हो गयी |


तीनो देवियाँ एक जगह मिलकर एक युक्ति बनाई जिससे पतिव्रता की परीक्षा ली जा सके | उन्होंने अपने अपने पतियों को इसमे साथ देने के मानना शुरू कर दिया | पहले तो त्रिदेवो को यह करना पाप समान लगा पर अपनी पत्नियों के हठ के सामने उन्हें झुकना पड़ा और इस कार्य के लिए तैयार हो गये |
अब तीनो देव साधु का वेश धारण करके अत्रि ऋषि के आश्रम  पहुंचे | उस समय अनुसूईया अकेली थी | साधुओ को अपने द्वार पर देख कर उन्होंने उनका अच्छे से स्वागत किया और भोजन पान करने का अनुग्रह किया | साधु के रूप में त्रिदेवो ने उसके सामने शर्त रखी की यदि वो  निवस्त्र होकर  उन्हें भोजन करवाएगी तब ही वो भोजन करेंगे |

अब यह सुनकर अनुसूईया धर्म संकट में पड़ गयी | एक तरफ साधुओ का सम्मान और एक तरफ पतिव्रता | पर जो सत्य और अच्छे होते है उन्हें राह मिल ही जाती है | ऐसा ही अनुसूईया के साथ हुआ | उसने परमेश्वर से विनती की , हे ईश्वर यदि मेरे पतिधर्म में कोई कमी ना हो तो  इन साधुओ को  छः-छः महीने के बच्चे की आयु के शिशु बना दो जिससे मैं इन्हे माँ के रूप में भोजन करा सकु | ऐसा करने से मेरा पति धर्म और साधू को उनकी शर्त पर  भोजन पान दोनों पूर्ण हो जायेंगे |



परमेश्वर की कृपा से तीनों देवता छः-छः महीने के बच्चे बन गए तथा अनुसूईया ने तीनों को निःवस्त्र होकर दूध पिलाया तथा पालने में लेटा दिया।

यह सब तीनो देवियाँ देख रही थी | अनुसूईया ने जिस तरह परीक्षा दी और अपने पतिव्रता धर्म का पालन किया , यह उन तीनो के लिए महान था | तीनो देवियों ने अनुसूईया के आश्रम आकर दर्शन दिए और उनसे ईर्ष्यावश जो परीक्षा ली उसके लिए माफ़ी मांगी | तीनो शिशु भी त्रिदेव ब्रह्मा ,विष्णु , महेश  के रूप में आकर अनुसूईया के धर्म की जय जयकार करने लग गये | उन सभी ने उसे आशीष दिया की जब जब पतिव्रता धर्म की बात की जाएगी अनुसूईया का नाम उस धर्म में हमेशा अमर रहेगा |