Friday, 5 July 2019
संत एकनाथ जी का एक स्मरण
(((( मृत्यु का पुण्य स्मरण ))))
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संत एकनाथ जी के पास एक बूढ़ा पहुँचा और बोलाः-
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आप भी गृहस्थी, मैं भी गृहस्थी। आप भी बच्चों वाले, मैं भी बच्चों वाला।
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आप भी सफेद कपड़ों वाले, मैं भी सफेद कपड़े वाला।
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लेकिन आपको लोग पूजते हैं, आपकी इतनी प्रतिष्ठा है, आप इतने खुश रह सकते हो, आप इतने निश्चिन्त जी सकते हो और मैं इतना परेशान क्यों.?
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आप इतने महान् और मैं इतना तुच्छ क्यों.?
एकनाथजी ने सोचा कि इसको सैद्धान्तिक उपदेश देने से काम नहीं चलेगा, उसको समझ में नहीं आयेगा।
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कुछ किया जाय…
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एकनाथ जी ने उसे कहाः चल रे सात दिन में मरने वाले..!
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तू मुझसे क्या पूछता है अब क्या फर्क पड़ेगा ? सात दिन में तो तेरी मौत है।
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वह आदमी सुनकर सन्न रह गया। एकनाथ जी कह रहे हैं सात दिन में तेरी मौत है तो बात पूरी हो गई।
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वह आदमी अपनी दुकान पर आया लेकिन उसके दिमाग में एकनाथ जी के शब्द घूम रहे हैं- सात दिन में मौत है.......
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उसको धन कमाने का जो लोभ था, हाय-हाय थी वह शान्त हुई।
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अपने प्रारब्ध का जो होगा वह मिलेगा। ग्राहकों से लड़ पड़ता था तो अब प्रेम से व्यवहार करने लगा।
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शाम होती थी तब दारू के घूँट पी लेता था वह दारू अब फीका हो गया।
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एक दिन बीता….दूसरा बीता….तीसरा बीता….।
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उसे भोजन में विभिन्न प्रकार के, विभिन्न स्वाद के व्यंजन, आचार, चटनी आदि चाहिए था, जरा सी कमी पड़ने पर आग-बबूला हो जाता था।
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अब उसे याद आने लग गया कि तीन दिन बीत गये, अब चार दिन ही बचे।
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कितना खाया-पिया ! आखिर क्या.?
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चौथा दिन बीता….पाँचवाँ दिन आया…।
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बहू पर क्रोध आ जाता था, बेटे नालायक दिखते थे, अब तीन दिन के बाद मौत दिखने लगी।
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सब परिवारजनों के अवगुण भूल गया, गद्दारी भूल गया।
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समाधान पा लिया कि संसार में ऐसा ही होता है। यह मेरा सौभाग्य है कि वे मुझ से गद्दारी और नालायकी करते हैं तो उनका आसक्तिपूर्ण चिन्तन मेरे दिल में नहीं होता है।
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यदि आसक्तिपूर्ण चिन्तन होगा तो फिर क्या पता इस घर में चूहा होकर आना पड़े या साँप होकर आना पड़े या चिड़ियाँ होकर आना पड़े, कोई पता नहीं है।
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पुत्र और बहुएँ गद्दार हुई हैं तो अच्छा ही है क्योंकि तीन दिन में अब जाना ही है।
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इतने समय में मैं विट्ठल को याद कर लूँ- विट्ठला… विट्ठला….विट्ठला… भगवान का स्मरण चालू हो गया।
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जीवन भर जो मंदिर में नहीं गया था, संतों को नहीं मानता था उस बूढ़े का निरन्तर जाप चालू हो गया।
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संसार की तू-तू, मैं-मैं, तेरा- मेरा सब भूल गया।
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छट्ठा दिन बीतने लगा।
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ज्यों-ज्यों समय जाने लगा त्यों- त्यों बूढ़े का भक्तिभाव, नामस्मरण, सहज-जीवन, सहनशक्ति, उदारता, प्रेम, विवेक, आदि सब गुण विकसित होने लगे।
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कुटुम्बी दंग रह गये कि इस बूढ़े का जीवन इतना परिवर्तित कैसे हो गया ?
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हम रोज मनौतियाँ मनाते थे कि यह बूढ़ा कब मरे, हमारी जान छूटे।
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बहुत पसारा मत करो कर थोड़े की आश।
बहुत पसारा जिन किया वे भी गये निराश।।
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उस बूढ़े का छट्ठा दिन बीत रहा है। उसकी प्रार्थना में उत्कण्ठा आ गई है कि "हे भगवान ! मैं क्या करूँ ? मेरे कर्म कैसे कटेंगे.?
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विठोबा… विठोबा… माजा विट्ठला… माजा विट्ठला…. जाप चालू है। रात्रि में नींद नहीं आयी।
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रविदास की बात उसको शायद याद आ गई होगी, अनजाने में उसके जीवन में रविदास चमका होगा।
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रविदास रात न सोइये दिवस न लीजिए स्वाद,
निश दिन हरि को सुमरीए छोड़ सकल प्रतिवाद।
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बूढ़े की रात अब सोने में नहीं गुजरती, विठोबा के स्मरण में गुजर रही है।
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सातवें दिन प्रभात हुई।
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बूढ़े ने कुटुम्बियों को जगायाः “बोला माफ करना, किया कराया माफ करना, मैं अब जा रहा हूँ।“
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कुटुम्बी रोने लगे किः अब तुम बहुत अच्छे हो गये हो, अब न जाते तो अच्छा होता।
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बूढ़ा कहता हैः गोबर से लीपकर चौका लगाओ, मेरे मुँह में तुलसी का पत्ता दो, गले में तुलसी का मनका बाँधो, आप लोग रोना मत।
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मुझे विठोबा के चिन्तन में मरने देना।
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कुटुम्बी सब परेशान हैं, इतने में एकनाथ जी वहाँ से गुजरे। कुटुम्बी भागे एकनाथजी के पैर पकड़े, आप घर में पधारो।
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एकनाथजी ने घर आकर बूढ़े से पूछाः क्यों, क्या बात है, क्यों सोये हो.?
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महाराजजी ! आप ही ने तो कहा था कि सात दिन में तुम्हारी मौत है। छः दिन बीत गये यह आखिरी दिन है।
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एकनाथजी उस बूढ़े से कहने लगेः तुमने मुझसे कहा था कि आप में और मुझमें क्या फर्क है।
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मैंने तुम्हें कहा कि तुम्हारी सात दिन में मौत होगी, तुमने अपनी मौत को सात दिन दूर देखा।
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अब बताओ, तुमने सात दिन में आने वाली मौत को देखकर कितनी बार दारू पिया ?”
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“एक बार भी नहीं।“
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“कितनी बार क्रोध किया ?”
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“एक बार भी नहीं।“
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“कितने लोगों से झगड़ा किया ?”
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“किसी से भी नहीं।“
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“तुमको सात दिन, छः दिन, पाँच दिन, चार दिन दूर मौत दिखी।
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जितनी- जितनी मौत नजदीक आती गई उतना उतना तुम ईश्वरमय होते गये, संसार फीका होता गया। यह तुम्हारा अनुभव है कि नहीं ?
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हाँ महाराज ! मेरा अनुभव है।
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सात दिन मौत दूर है तो संसार में कहीं रस नहीं दिखा, भगवान् में प्रीति बढ़ी, जीवन भक्तिमय बन गया।
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भगवान् का नाम सदा याद रखो हमारी मृत्यु सात क्या किसी भी पल आ सकती है...
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सदा याद रखना है कि हम सब सात दिन में मरने वाले हैं।
राम राम जी
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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प्रेरणादायक कहानी
एक चोखी पोस्ट के साथ विराम.... 👌
एक बादशाह सर्दियों की शाम जब अपने महल में दाखिल हो रहा था तो एक बूढ़े दरबान को देखा जो महल के सदर दरवाज़े पर पुरानी और बारीक वर्दी में पहरा दे रहा था...।
बादशाह ने उसके करीब अपनी सवारी को रुकवाया और उस बूढ़े दरबान से पूछने लगा...
"सर्दी नही लग रही ?"
दरबान ने जवाब दिया..... "बोहत लग रही है हुज़ूर ! मगर क्या करूँ, गर्म वर्दी है नही मेरे पास, इसलिए बर्दाश्त करना पड़ता है।"
बादशाह ने कहा "मैं अभी महल के अंदर जाकर अपना ही कोई गर्म जोड़ा भेजता हूँ तुम्हे।"
दरबान ने खुश होकर बादशाह को फर्शी सलाम किया और आजिज़ी का इज़हार किया।
लेकिन...... बादशाह जैसे ही महल में दाखिल हुआ, दरबान के साथ किया हुआ वादा भूल गया।
सुबह दरवाज़े पर उस बूढ़े दरबान की अकड़ी हुई लाश मिली और करीब ही मिट्टी पर उसकी उंगलियों से लिखी गई ये तहरीर भी......
"बादशाह सलामत ! मैं कई सालों से सर्दियों में इसी नाज़ुक वर्दी में दरबानी कर रहा था, मगर कल रात आप के गर्म लिबास के वादे ने मेरी जान निकाल दी।"
✍✍"सहारे इंसान को खोखला कर देते है और उम्मीदें कमज़ोर कर देती है"
"अपनी ताकत के बल पर जीना शुरू कीजिए, खुद की सहन शक्ति, ख़ुद की ख़ूबी पर भरोसा करना सीखें"
आपका, आपसे अच्छा साथी, दोस्त, गुरु, और हमदर्द कोई नही हो सकता।।👏🏻👏🏻👏🏻
हनुमान कथा
श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा केसाथ सिंहासन पर विराजमान थे,
निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे।
तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था।
बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु,
आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था,
सीता आपकी पत्नी थीं।
क्या वे मुझसेभी ज्यादा सुंदर थीं?
द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है।
तभी गरुड़ ने कहा कि भगवान क्या दुनिया में मुझसेभी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है।
इधर सुदर्शनचक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि भगवान, मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है।
क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?
भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।
वे जान रहे थे कि उनके इनतीनों भक्तों को अहंकार हो गया है औरइनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।
ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि हे गरुड़!
तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम,माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।
गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीशने राम का रूप धारण कर लिया।
मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेश द्वार परपहरा दो।
और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा केबिना महल में कोई प्रवेश न करे।
भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार परतैनात हो गए।
गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर कहा कि हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कररहे हैं।
आप मेरे साथ चलें।
मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।
हनुमान ने विनयपूर्वक गरुड़ से कहा, आप चलिए, मैं आता हूं।
गरुड़ ने सोचा, पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा।
खैर मैंभगवान के पास चलता हूं।
यह सोचकर गरुड़ शीघ्रता सेद्वारका की ओर उड़े।
पर यह क्या, महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु केसामने बैठे हैं।
गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया।
तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि पवन पुत्र तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए?
क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान नेकहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था,
इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आगया।
मुझे क्षमा करें।
भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे।
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया हेप्रभु!
आज आपने माता सीता के स्थान पर किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।
अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी।
उन्हें सुंदरता का अहंकार था,जो पलभर में चूर हो गया था।
रानी सत्यभामा,सुदर्शन चक्र व गरुड़ तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था।
वे भगवान की लीला समझ रहे थे।
तीनों की आंख सेआंसू बहने लगे और वे भगवान के चरणों में झुक गए।
अद्भुतलीला है प्रभु की। अपने भक्तों के अंहकार को अपनेभक्त द्वारा ही दूर किया।...
जय हो भक्त शिरोमणि
*जय जय वीर हनुमाना जय श्री राम*