Jeevan dharam

Krishna sakhi is about our daily life routine, society, culture, entertainment, lifestyle.

Saturday, 12 May 2018

मनपंसद संतान-प्राप्ति के योग

No comments :
मनपंसद संतान-प्राप्ति के योग
स्त्री के ऋतु दर्शन के सोलह रात तक ऋतुकाल रहता है,उस समय में ही गर्भ धारण हो सकता है,उसके अन्दर पहली चार रातें निषिद्ध मानी जाती है,कारण दूषित रक्त होने के कारण कितने ही रोग संतान और माता पिता में अपने आप पनप जाते है,इसलिये शास्त्रों और विद्वानो ने इन चार दिनो को त्यागने के लिये ही जोर दिया है।
चौथी रात को ऋतुदान से कम आयु वाला पुत्र पैदा होता है,पंचम रात्रि से कम आयु वाली ह्रदय रोगी पुत्री होती है,छठी रात को वंश वृद्धि करने वाला पुत्र पैदा होता है,सातवीं रात को संतान न पैदा करने वाली पुत्री,आठवीं रात को पिता को मारने वाला पुत्र,नवीं रात को कुल में नाम करने वाली पुत्री,दसवीं रात को कुलदीपक पुत्र,ग्यारहवीं रात को अनुपम सौन्दर्य युक्त पुत्री,बारहवीं रात को अभूतपूर्व गुणों से युक्त पुत्र,तेरहवीं रात को चिन्ता देने वाली पुत्री,चौदहवीं रात को सदगुणी पुत्र,पन्द्रहवीं रात को लक्ष्मी समान पुत्री,और सोलहवीं रात को सर्वज्ञ पुत्र पैदा होता है। इसके बाद की रातों को संयोग करने से पुत्र संतान की गुंजायश नही होती है। इसके बाद स्त्री का रज अधिक गर्म होजाता है,और पुरुष के वीर्य को जला डालता है,परिणामस्वरूप या तो गर्भपात हो जाता है,अथवा संतान पैदा होते ही खत्म हो जाती है।
शक्तिशाली व गोरे पुत्र प्राप्ति के लिए
गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एककोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा | इसके साथ सुवर्णप्राश की २-२ गोलियां लेने से संतान तेजस्वी होगी |
विच्चें।
कैसे हो पुत्र की प्राप्‍ति ?
प्रश्‍न : पुत्र प्राप्ति हेतु किस समय संभोग करें ?
उत्तर : इस विषय में आयुर्वेद में लिखा है कि
गर्भाधान ऋतुकाल की आठवीं, दसवी और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतुस्राव शुरू हो उस दिन व रात को प्रथम मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियाँ पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियाँ पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं। इस संबंध में ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों। इस संबंध में अधिक जानकारी हेतु इसी इसी चैनल के होमपेज पर ‘गर्भस्थ शिशु की जानकारी’ पर क्लिक करें।
प्रश्न : सहवास से विवृत्त होते ही पत्नी को तुरंत उठ जाना चाहिए या नहीं? इस विषय में आवश्यक जानकारी दें ?
उत्तर : सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए। पर्याप्त विश्राम कर शरीर की उष्णता सामान्य होने के बाद कुनकुने गर्म पानी से अंगों को शुद्ध कर लें या चाहें तो स्नान भी कर सकते हैं, इसके बाद पति-पत्नी को कुनकुना मीठा दूध पीना चाहिए।
प्रश्न : मेधावी पुत्र प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर : इसका उत्तर देना मुश्किल है,
प्रश्न : संतान में सदृश्यता होने का क्या कारण होता है ?
उत्तर : संतान की रूप रेखा परिवार के किसी सदस्य से मिलती-जुलती होती है,
पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका
हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।
यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
* चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
* पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
* छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
* सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
* आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
* नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
* दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
* ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
* बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
* तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
* चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
* पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
* सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया, जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘संस्कार विधि’ में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि पूर्णरूप से की है।
* दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
* 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
* प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
* यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
* चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
* कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं। अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए।
* जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।
विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।

जीवन सूत्र

No comments :

जीवन सूत्र परंपरा
         .वर्तमान मे जीने मे समय तो लगता हि हे.- कोई तुरंत समझ गये,तो कोई मृत्युपर्यन्त भी नही.
         . आयुर्वेद की ज्यादातर दवाई सवेरे खाली पेट अच्छे से काम करती है,
         .बीमारी से नही डाक्टर से बचें.
बाल –  सरसों का तेल और नीबू, देसी घी, मुलतानी मिट्टी, दही. मेंहदि .!
         .अनिद्रा , सपने , खराटें ,यादाश्त्त, सिर के  रोग – ध्यान, तलवो पर मालिश , गाय का घी नाक में डालें , कहानियां पढे..”
         .यादाश्त्त – जिस बेड पर सोते है उस बेड को पाँव वाले हिस्से को किसी अन्य वस्तु से ऊचा उठाकर रखे.
          .ब्रेन टियुमर – गोमूत्र में सर्पगंधा, तथा रौप्य शहद मिलाकर लेना.
           .नेत्र – आंवला, गाजर, शतावरी, त्राटक- दशहरे से शरद पूर्णिमा तक त्राटक करना , शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है | इसके साथ ही शीतऋतु का प्रारंभ होता है |
           .बुखार  – अमृता .
           .डेंगू – अनारजूस , गेंहू घास रस , गिलोय/अमृता/अमरबेल , पपीते के पत्तों का रस.
          .
           .मुँह के छाले – ईसबगोल को पानी में लगभग दो घंटे के लिए भिगोकर रखें | इस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ला करना.

होट फटना – नाभि पर देसी घी अथवा तेल .
           .दमा अर्थात् सल्फ़र की कमी, जिस तरह कोलतार सड़क पर चिपकती है उसी प्रकार मेदे से बनी वस्तुए बड़ी आंत पर चिपकती है,इडली भी निषेध.!
           .जब पेट की अम्लता रक्त में चली जाए तभी हृदयघात है तो क्षारिए चीजों का प्रयोग जैसे दुधि रस,तुलसी,पुदीना,काला नमक,सेंधा नमक, धनिया पत्ता,काली मिच, अथवा गाजर,मूली,चुकन्दर,मूंगफली, गुड़ आदि
जमीन के निचे जो कुछ भी होता है वो सब रक्त अम्लता को कम करते है . .पर लौकि …भी
            .निम्न रक्तचाप – पानी में सेंधा नमक या गुड़ या निम्बू मिलकर पीना, अथवा अनार, गन्ना,सन्तरा,अन्नानास,अंगूर, मिश्री माखन, दूध में घी, खजूर, अथवा किशमिश रात को पानी में भिगोना सवेरे खाली पेट उसको खाना , खमीरा अंबरी.!
             .उच्च रक्तचाप – दालचीनी को सुखाकर पाउडर बना के गुड़ या शहद मिला क्र गरम पानी से सवेरे पीना अथवा लोकीरस में धनिया पत्ता,पुदीना,तुलसी,कालीमिर्च , सर्पगंधा,
सेंधा नमक के पानी से स्नान, साबुन न लगाए
             .ऑतो की सूजन- दही

किडनी – २ चम्मच नीम के पत्ते का रस सुबह पीना और  २ चम्मच पीपल के पत्ते का रस शाम को पीना
             .अर्श रोग – एक कप मूली का रस खाना खाने के बाद यह केवल सवेरे ही लेना है खुनी और बादी दोनों तरह के और काला अंगूर रस,

गर्मी – बेलरस , प्याज़ , दही , और दहियें कान में रुई रखें !
              .ठण्ड – जायफल दूध के साथ अथवा लहसुन , अदरक , गाजर , तुलसी , लौंग , छुआरे , खजूर .

वजन बढ़ाने के लिए – दही केला, चन्ना गुड़, मुंगफली गुड़ .

गैंग्रीन, चोट,ऑपरेशन से घाव होना,गीला सोरायेसस,गिला एक्स्सिमा,जले हुए के लिए भी,केन्सर घाव- पिसी हुई हल्दी, गेंदे के फूल की चटनी , गौमूत्र ,सड़ा हुआ केला, केले के तने का तेल..लेपन.
           .केंसर- आधा कप देसी काली गायें की बच्छडी का मूत्र जो कभी माँ नही बनी है ऐसा गोमुत्र हो तो ऊत्तम और आधा चम्मच हल्दी दोनों मिलाकर उबाल कर ठण्डा करके पीना इसमें आधा चम्मच पुनर्नवा,शहद,तेलियाकंद ,तुलसी, अगर किसी ने कीमोथेरेपी या कोई एलोपैथी ट्रीटमेन्ट आरम्भ कर दिया है तो फिर यह सब उपाए न करें
            .गांठ,रसोली,ट्युमर –  गोमूत्र में हल्दी, अथवा चुना, आयुर्वेद कहता है शरीर में सभी गांठ कैन्सर नही होती और यह कि जो गांठ शरीर में बनती है वो घुलती भी है
ये कैल्शियम की कमी से बनती है,
पेट में रसोली या अन्दर की गांठ –
दवाई – चुना पानी में मिलाकर अथवा दही में अथवा पान में अथवा गन्ने के रस में
पीलिया (हैपेटाइटिस a,b,c,d,)- ईख के रस में चुना,मोसमी रस में,सन्तरे रस में, अंगूर रस में,.भी बदल -२ कर लेते रहे.!

चुना – केवल पथरी वाले नही ले सकते बाकी हर एक रोग के लिए है जैसे – लम्बाई बढ़ाना 21 वर्ष से पहले, शारारिक कमजोरी, हडियाँ कमजोर, हडडी टूटना, नपुंसकता,मानसिक कमजोरी आदि.
गायें,भेंस को भी पानी में चुना मिलाकर देना ताकि उनका दूध बढ़े, घी, मक्खन बढ़े .!

चुने का इस्तेमाल करते वक़्त सावधानियाँ – सीधा जीभ पर नही रखे .सिर्फ गेंहू के बराबर तक का चुना ले सकते है इससे अधिक नही, चुना केवल पत्थर वाला लेना जो पान की दुकान पर मिलता है,दूध में चुना नही मिलाना बाकी दूसरी चीजों में चुने को मिला सकते है .

दालचीनी – पित्त के सभी रोगों के लिए  जैसे पेट की कोई भी समस्या या गले में दर्द, इससे 48 रोग ठीक .
दालचीनी को कभी भी अकेले नही खाना, दालचीनी में गुड़ अथवा शहद, मात्रा सम,या अन्य औषध के साथ
घुटनों की समस्या, नींद आदि .

अटैक रात



Ruchi Sehgal

पुत्र प्राप्ति के कुछ सिद्ध उपाय

No comments :
यदि किसी व्यक्ति को संतान प्राप्ति में समस्या आ रही हो, तो ऐसे व्यक्ति इस लेख में लिखे गये सरल उपायों को अपना कर संतान की प्राप्ति अति ही सहजता के साथ कर सकते हैं। किंतु उपायों को अति सावधानी से व श्रद्धा के साथ करना अति आवश्यक होता है।
उपाय निम्नवत हैं:-
दंपति को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए।
गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें, पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभव पीला भोजन ही करें।
माता बनने की इच्छुक महिला को चाहिए गुरुवार के दिन गेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं।
शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एक सुपारी रखकर सूर्यास्त से पहले किसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतान का वरदान देने के लिए प्रार्थना करें निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी ।
गुरुवार के दिन पीले धागे में पीली कौड़ी को कमर में बांधने से संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।
माता बनने की इच्छुक महिला को पारद शिवलिंग का रोजाना दूध से अभिषेक करें उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।
हर गुरुवार को भिखारियों को गुड़ का दान देने से भी संतान सुख प्राप्त होता है ।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर स्त्री को पिलाएं यह सिद्ध एंवम परीक्षित प्रयोग है ।
रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाए और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।
श्वेत लक्ष्मणा बूटी की 21 गोली बनाकर उसे नियमपूर्वक गाय के दूध के साथ लेने से संतान सुख की अवश्य ही प्राप्ति होती है ।
उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर सदैव अपने पास रखने से निसंतान दम्पति को संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है ।
नींबू की जड़ को दूध में पीसकर उसमे शुद्ध देशी घी मिला कर सेवन करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना बड़ जाती है ।
पहली बार ब्याही गाय के दूध के साथ नागकेसर के चूर्ण का लगातार 7 दिन सेवन करने से संतान पुत्र उत्पन्न होता है ।
सवि ( सांवा) का भात और मुंग की दाल खाने से बांझ पन दूर होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।
गर्भ का जब तीसरा महीना चल रहा हो तो गर्भवती स्त्री को शनिवार को थोडा सा जायफल और गुड़ मिलाकर खिलाने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।
पुराने चावल को धोकर भिगो दें बनाने से पहले उसके पानी को अलग करके उसमें नीबूं की जड़ को महीन पीसकर उस पानी को स्त्री पी कर अपने पति से सम्बन्ध बनाये वह स्त्री कन्या को जन्म देगी ।
संतान प्राप्ति के लिए पति-पत्नी दोनों को रामेश्वरम् की यात्रा करनी चाहिए तथा वहां सर्प-पूजन करवाना चाहिए। इस कार्य को करने से संतान-दोष समाप्त होता है।
स्त्री में कमी के कारण संतान होने में बाधा आ रही हो, तो लाल गाय व बछड़े की सेवा करनी चाहिए। लाल या भूरा कुत्ता पालना भी शुभ रहता है।
यदि विवाह के दस या बारह वर्ष बाद भी संतान न हो, तो मदार की जड़ को शुक्रवार को उखाड़ लें। उसे कमर में बांधने से स्त्री अवश्य ही गर्भवती हो जाएगी।
जब गर्भ धारण हो गया हो, तो चांदी की एक बांसुरी बनाकर राधा-कृष्ण के मंदिर में पति-पत्नी दोनों गुरुवार के दिन चढ़ायें तो गर्भपात का भय/खतरा नहीं होता।
यदि बार-बार गर्भपात होता है, तो शुक्रवार के दिन एक गोमती चक्र लाल वस्त्र में सिलकर गर्भवती महिला के कमर पर बांध दें। गर्भपात नहीं होगा।
जिन स्त्रियों के सिर्फ कन्या ही होती है, उन्हें शुक्र मुक्ता पहना दी जाये, तो एक वर्ष के अंदर ही पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी।
यदि बच्चे न होते हों या होते ही मर जाते हों, तो मंगलवार के दिन मिट्टी की हांडी में शहद भरकर श्मशान में दबायें।