जीवन सूत्र परंपरा
.वर्तमान मे जीने मे समय तो लगता हि हे.- कोई तुरंत समझ गये,तो कोई मृत्युपर्यन्त भी नही.
. आयुर्वेद की ज्यादातर दवाई सवेरे खाली पेट अच्छे से काम करती है,
.बीमारी से नही डाक्टर से बचें.
बाल – सरसों का तेल और नीबू, देसी घी, मुलतानी मिट्टी, दही. मेंहदि .!
.अनिद्रा , सपने , खराटें ,यादाश्त्त, सिर के रोग – ध्यान, तलवो पर मालिश , गाय का घी नाक में डालें , कहानियां पढे..”
.यादाश्त्त – जिस बेड पर सोते है उस बेड को पाँव वाले हिस्से को किसी अन्य वस्तु से ऊचा उठाकर रखे.
.ब्रेन टियुमर – गोमूत्र में सर्पगंधा, तथा रौप्य शहद मिलाकर लेना.
.नेत्र – आंवला, गाजर, शतावरी, त्राटक- दशहरे से शरद पूर्णिमा तक त्राटक करना , शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है | इसके साथ ही शीतऋतु का प्रारंभ होता है |
.बुखार – अमृता .
.डेंगू – अनारजूस , गेंहू घास रस , गिलोय/अमृता/अमरबेल , पपीते के पत्तों का रस.
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.मुँह के छाले – ईसबगोल को पानी में लगभग दो घंटे के लिए भिगोकर रखें | इस पानी को कपड़े से छानकर कुल्ला करना.
होट फटना – नाभि पर देसी घी अथवा तेल .
.दमा अर्थात् सल्फ़र की कमी, जिस तरह कोलतार सड़क पर चिपकती है उसी प्रकार मेदे से बनी वस्तुए बड़ी आंत पर चिपकती है,इडली भी निषेध.!
.जब पेट की अम्लता रक्त में चली जाए तभी हृदयघात है तो क्षारिए चीजों का प्रयोग जैसे दुधि रस,तुलसी,पुदीना,काला नमक,सेंधा नमक, धनिया पत्ता,काली मिच, अथवा गाजर,मूली,चुकन्दर,मूंगफली, गुड़ आदि
जमीन के निचे जो कुछ भी होता है वो सब रक्त अम्लता को कम करते है . .पर लौकि …भी
.निम्न रक्तचाप – पानी में सेंधा नमक या गुड़ या निम्बू मिलकर पीना, अथवा अनार, गन्ना,सन्तरा,अन्नानास,अंगूर, मिश्री माखन, दूध में घी, खजूर, अथवा किशमिश रात को पानी में भिगोना सवेरे खाली पेट उसको खाना , खमीरा अंबरी.!
.उच्च रक्तचाप – दालचीनी को सुखाकर पाउडर बना के गुड़ या शहद मिला क्र गरम पानी से सवेरे पीना अथवा लोकीरस में धनिया पत्ता,पुदीना,तुलसी,कालीमिर्च , सर्पगंधा,
सेंधा नमक के पानी से स्नान, साबुन न लगाए
.ऑतो की सूजन- दही
किडनी – २ चम्मच नीम के पत्ते का रस सुबह पीना और २ चम्मच पीपल के पत्ते का रस शाम को पीना
.अर्श रोग – एक कप मूली का रस खाना खाने के बाद यह केवल सवेरे ही लेना है खुनी और बादी दोनों तरह के और काला अंगूर रस,
गर्मी – बेलरस , प्याज़ , दही , और दहियें कान में रुई रखें !
.ठण्ड – जायफल दूध के साथ अथवा लहसुन , अदरक , गाजर , तुलसी , लौंग , छुआरे , खजूर .
वजन बढ़ाने के लिए – दही केला, चन्ना गुड़, मुंगफली गुड़ .
गैंग्रीन, चोट,ऑपरेशन से घाव होना,गीला सोरायेसस,गिला एक्स्सिमा,जले हुए के लिए भी,केन्सर घाव- पिसी हुई हल्दी, गेंदे के फूल की चटनी , गौमूत्र ,सड़ा हुआ केला, केले के तने का तेल..लेपन.
.केंसर- आधा कप देसी काली गायें की बच्छडी का मूत्र जो कभी माँ नही बनी है ऐसा गोमुत्र हो तो ऊत्तम और आधा चम्मच हल्दी दोनों मिलाकर उबाल कर ठण्डा करके पीना इसमें आधा चम्मच पुनर्नवा,शहद,तेलियाकंद ,तुलसी, अगर किसी ने कीमोथेरेपी या कोई एलोपैथी ट्रीटमेन्ट आरम्भ कर दिया है तो फिर यह सब उपाए न करें
.गांठ,रसोली,ट्युमर – गोमूत्र में हल्दी, अथवा चुना, आयुर्वेद कहता है शरीर में सभी गांठ कैन्सर नही होती और यह कि जो गांठ शरीर में बनती है वो घुलती भी है
ये कैल्शियम की कमी से बनती है,
पेट में रसोली या अन्दर की गांठ –
दवाई – चुना पानी में मिलाकर अथवा दही में अथवा पान में अथवा गन्ने के रस में
पीलिया (हैपेटाइटिस a,b,c,d,)- ईख के रस में चुना,मोसमी रस में,सन्तरे रस में, अंगूर रस में,.भी बदल -२ कर लेते रहे.!
चुना – केवल पथरी वाले नही ले सकते बाकी हर एक रोग के लिए है जैसे – लम्बाई बढ़ाना 21 वर्ष से पहले, शारारिक कमजोरी, हडियाँ कमजोर, हडडी टूटना, नपुंसकता,मानसिक कमजोरी आदि.
गायें,भेंस को भी पानी में चुना मिलाकर देना ताकि उनका दूध बढ़े, घी, मक्खन बढ़े .!
चुने का इस्तेमाल करते वक़्त सावधानियाँ – सीधा जीभ पर नही रखे .सिर्फ गेंहू के बराबर तक का चुना ले सकते है इससे अधिक नही, चुना केवल पत्थर वाला लेना जो पान की दुकान पर मिलता है,दूध में चुना नही मिलाना बाकी दूसरी चीजों में चुने को मिला सकते है .
दालचीनी – पित्त के सभी रोगों के लिए जैसे पेट की कोई भी समस्या या गले में दर्द, इससे 48 रोग ठीक .
दालचीनी को कभी भी अकेले नही खाना, दालचीनी में गुड़ अथवा शहद, मात्रा सम,या अन्य औषध के साथ
घुटनों की समस्या, नींद आदि .
अटैक रात
Ruchi Sehgal
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