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Friday, 18 May 2018

Vedmatri Yakshini Sadhna ||

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विद्या यक्षिणी – वेद मात्री साधना ||

यक्षिणी साधना के अंतर्गत यह साधना विद्या प्राप्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण है | इससे साधक को कई गुप्त विद्याओं का ज्ञान यक्षिणी प्रदान कर देती है | जिससे वो कई विद्याओं में पारंगत हो जाता है और इसके साथ ही उसकी दरिद्रता का नाश भी हो जाता है | आलस्य दूर होकर वो एक अच्छे साधक की श्रेणी में आ जाता है | उसके लिए साधना मार्ग सुलभ हो जाता है | यक्षिणी कई साधनाओं में सहायता प्रदान स्वयं कर देती है | इसे किसी भी पूर्णिमा या पंचमी तिथि से शुरू करें | इसकी साधना सरल है |

विधि

शुद्ध सफ़ेद वस्त्र पहन कर आसन पर पूर्व मुख बैठें | गुरु पूजन और श्री गणेश पूजन कर गुरु जी से साधना में सफलता की प्रार्थना करें और साधना करने की आज्ञा प्राप्त करें |

फिर दिशा शोधन के लिए जल लेकर “ॐ श्रीं ॐ” पढ़ कर चारों दिशाओं में छिड़क दें और पूजा शुरू करें | एक तेल का दिया जला लें और एक वेदी सी बना लें आटे, हल्दी और कुंकुम को मिलाकर | उसमें एक छोटी  सी मिटटी की मूर्ति बनाकर उसे हल्दी, कुंकुम और चन्दन से रंग दें | मूर्ति औरत की बनायें | उसी को उस वेदी में स्थापित करें और एक जल का कलश स्थापित करें | उस पर नारियल रखें | वेदी में पाँच लड्डू, कुंकुम, सफ़ेद फूल, लोंग, इलायची, पान, सुपारी, एक पीपल के पत्ते पर रख दें और उस मूर्ति की पूजा करें | तेल का दिया जला दें और सुगंध के लिए अगरबत्ती लगा दें | पूजन के पश्चात जप शुरू करें | इस साधना में ब्रह्मचर्य का पालन करें और साधना समाप्ति पर 25 माला मन्त्र से हवन करें पाँच मेवा और घी मिलाकर तो वेद मात्री यक्षिणी प्रसन्न होकर वरदान देती है और उसे कई प्रकारकी विद्याओं में पारंगत बना देती है | यह मन्त्र रिद्धी सिद्धि देने वाला है | प्राप्त किसी भी विद्या का दुरूपयोग ना करें और ध्यान में पवित्रता रखें |

साधना काल

इसका जाप रात्रि 10 बजे से शुरू करें |

दिन सोमवार या पंचमी तिथि या पूर्णिमा को शुरू करें |

दिशा उत्तर या पूर्व को मुख कर बैठें |

भोग के लिए लडू पास रख सकते हैं |

वस्त्र सफ़ेद आसन कोई भी सफ़ेद रंग का ले सकते हैं |

यह वेद ज्ञान प्रदान करने वाली साधना है, इसे पवित्रता से करें |



मन्त्र

|| ॐ ह्रीं वेद मात्री स्वाहा ||

|| Om Hreem Ved Matri Swaha ||



इस मन्त्र का 21 माला जप करना है एक महीने तक | 21 दिन भी किया जा सकता है | यह साधना सीधे साधक को गुरु से जोड़ देती है और गुरु माध्यम से उसे विद्या प्राप्त होने लगती है | ऐसा बहुत साधकों का अनुभव है |



Ruchi Sehgal

श्रीनायिका कवचम् – यक्षिणी वशीकरण हेतु

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श्रीनायिका कवचम् – यक्षिणी वशीकरण हेतु

।। श्री उन्मत्त-भैरव उवाच ।।
श्रृणु कल्याणि ! मद्-वाक्यं, कवचं देव-दुर्लभं । यक्षिणी-नायिकानां तु,

संक्षेपात् सिद्धि-दायकं ।।

हे कल्याणि ! देवताओं को दुर्लभ, संक्षेप (शीघ्र) में सिद्धि देने वाले,

यक्षिणी आदि नायिकाओं के कवच को सुनो –



ज्ञान-मात्रेण देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं । यक्षिणि स्वयमायाति,

कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।

हे देवशि ! इस कवच के ज्ञान-मात्र से यक्षिणी स्वयं आ जाती है और निश्चय ही सिद्धि मिलती है ।



सर्वत्र दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं । पठनात् धारणान्मर्त्यो,

यक्षिणी-वशमानयेत् ।।

हे देवि ! यह कवच सभी शास्त्रों में दुर्लभ है, केवल डामर-तन्त्रों में प्रकाशित किया गया है ।

इसके पाठ और लिखकर धारण करने से यक्षिणी वश में होती है ।

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्रीगर्ग ऋषिः, गायत्री छन्दः,

श्री अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे नमः मुखे, श्री

अमुकी यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात् सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे

विनियोगाय नमः सर्वांगे ।


।। मूल पाठ ।।
शिरो मे यक्षिणी पातु, ललाटं यक्ष-कन्यका ।

मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।

चक्षुषी वरदा पातु, नासिकां भक्त-वत्सला ।

केशाग्रं पिंगला पातु, धनदा श्रीमहेश्वरी ।।

स्कन्धौ कुलालपा पातु, गलं मे कमलानना ।

किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।

विकृतास्या सदा पातु, महा-वज्र-प्रिया मम ।

अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।

मेरे सिर की रक्षा यक्षिणि, ललाट (मस्तक) की यक्ष-कन्या, मुख की श्री धनदा

और कानों की रक्षा कुल-नायिका करें । आँखों की रक्षा वरदा,नासिका की

भक्त-वत्सला करे । धन देनेवाली श्रीमहेश्वरी पिंगला केशों के आगे के भाग

की रक्षा करे । कन्धों की रक्षा किलालपा, गले की कमलानना करें । दोनों

भुजाओं की रक्षा किरातिनी और जटेश्वरी करें । विकृतास्या और महा-वज्र-प्रिया

सदा मेरी रक्षा करें । अस्त्र-हस्ता सदा पीठ और उदर (पेट) की रक्षा करें ।



भेरुण्डा माकरी देवी, हृदयं पातु सर्वदा ।

अलंकारान्विता पातु, मे नितम्ब-स्थलं दया ।।

धार्मिका गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं सुरांगना ।

शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।

निष्कलंका सदा पातु, चाम्बुवत्यखिलं तनुं ।

प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।

लक्ष्मी-बीजात्मिका पातु, खड्ग-हस्ता श्मशानके ।

शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका ।।

पातु मां वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु मोहिनी ।

महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।

क्रोध-रुपा सदा पातु, महा-देव निषेविका ।

सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।

हृदय की रक्षा सदा भयानक स्वरुपवाली माकरी देवी तथा नितम्ब-स्थल की

रक्षा अलंकारों से सजी हुई दया करें । गुह्य-देश (गुप्तांग) की रक्षा धार्मिका

और दोनों पैरों की रक्षा सुरांगना करें । सूने घर (या ऐसा कोई भी स्थान,

जहाँ कोई दूसरा आदमी न हो) में मन्त्र-माता-स्वरुपिणी (जो सभी मन्त्रों की

माता-मातृका के स्वरुप वाली है) सदा मेरी रक्षा करें । मेरे सारे शरीर

की रक्षा निष्कलंका अम्बुवती करें । अपने बीज (मन्त्र) को प्रकट करने वाली

धनदा प्रान्तर (लम्बे और सूनसान मार्ग, जन-शून्य या विरान सड़क, निर्जन

भू-खण्ड) में रक्षा करें । लक्ष्मी-बीज (श्रीं) के स्वरुप वाली

खड्ग-हस्ता श्मशआन में और शून्य भवन (खण्डहर आदि) तथा नदी के किनारे

महा-यक्षेश-कन्या मेरी रक्षा करें । वरदा मेरी रक्षा करें । सर्वांग की रक्षा मोहिनी करें

। महान संकट के समय, युद्ध में और शत्रुओं के बीच में महा-देव की सेविका

क्रोध-रुपा सदा मेरी रक्षा करें । सभी जगह सदैव किल-दायिका भवानी मेरी रक्षा करें ।



इत्येतत् कवचं देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं ।

अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात् ।।

पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले ।

वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम् ।

अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः ।

यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा ।।

अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः सुख-सिद्धि-फलं लभेत् ।

पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे ।।

स्थित्वा जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि ।

भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः ।।

ग्रहणादेव सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या विचारणा ।।

हे देवी ! यह कवच महा-यक्षिणी की प्रीति देनेवाला है । इसके स्मरण मात्र

से साधक शीघ्र ही राजा के समान हो जाता है । कवच का पाठ-कर्त्ता पाँच हजार

वर्षों तक भूमि पर जीवित रहता है है और अवश्य ही वेदों तथा अन्य सभी

शास्त्रों का



Ruchi Sehgal

धनदा यक्षिणी साधना

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|| Dhanda Yakshini sadhna

यक्षिणी साधना जहां धन देती है वही आपकी कामना पूर्ति भी करती है | जीवन में आ रही परेशानियों को सहज समझ कर उनका निवारण करने का गुण प्रदान करती है | एक सच्चे मित्र की तरह साथ देती हुई साधक का हर प्रकार से मंगल करती है | यक्षिनियाँ माता की सहचरियां होती हैं और साधक की साधना में निखार ला देती हैं | सही मायने में देखा जाए तो यक्षिणी साधना जीवन में बसंत ऋतु के समान है | जब साधक निरंतर साधना करते हुए ऊर्जा को सहन करते करते मन से कुछ तपस के कारण ऊब सा जाता है या यह कहूँ कि तेज को सहन करने की वजह से कई बार मन की स्थिति ऐसी हो जाती है कि उसके लिए जीवन में, मन में एक वैराग पैदा होने से उदासी सी आ जाती है | ऐसे वक़्त में यक्षिणी उसे नई उमंग देते हुए मन को आनंद से भर देती है | उसके जीवन में वर्षा की फुहार की तरह कार्य करती है | जब साधक आनंद से सराबोर होता है तो साधना करने की ललक उसे जीवन में और शक्ति अर्जित करने को प्रेरित करती है | यह साधक के जीवन में प्रेम को समझने का गुण पैदा करती है | उसके जीवन को धन धान्य आदि सुख प्रदान करती है | धनदा यक्षिणी की साधना मंत्र शाश्त्रों में नाना प्रकार से दी हुई है | जीवन में स्वर्ण क्षण होते हैं जब साधक किसी यक्षिणी का सहचर्य प्राप्त करता है | यक्षिणी साधना दुर्लभ है पर दुष्कर नहीं | यह सहज ही संपन्न हो जाती है बस इसे समझने की जरूरत है | जो साधक जीवन में धन आदि सुख चाहते हैं उन्हे यह साधना संपन्न करनी चाहिए और यह साधना साधक के मन में साधना के प्रति प्रेरणा पैदा करती है | 

यहाँ मैं धनदा यक्षिणी की साधना दे रहा हूँ | आशा करता हूँ यह साधना आपके जीवन को जरूर नई दिशा देगी | इसके लिए साधना के नियमो की पालना करनी अनिवार्य है | यक्षिणी रूप सौन्दर्य से परिपूर्ण होती है यह साधक का काया कल्प तक कर देती है | धनदा यक्षिणी 20 -22 वर्ष की सौन्दर्य की मूर्ति है | इसकी आंखे झील सी गहराई लिए हुई नीली दिखाई देती हैं | गौर वर्णीय मुख के दोनों तरफ दो बालों की बल खाती दो लटाएं और लंबी वेणी बालों पर कजरा सा लगाए सुंदर रूप चंद्रमा जैसा जिस सौन्दर्य की आप कल्पना भी नहीं कर सकते उसके बारे में अधिक कुछ नहीं कह सकता और प्रेम से मन को प्रफुल्लित सी करती हुई जब आपके सामने आती है तो उस वक़्त कैसा मंजर होता है यह आप स्वयं करके देख लें | मेरा इस यक्षिणी ने कई बार साथ दिया | जब भी जीवन में उदासीन क्षण आए इसने मुझे सँभाला और हमेशा मित्रवत व्यवहार किया | जब भी मुझे इसकी सलाह की जरूरत पड़ी एक सच्चे मित्र की तरह मुझे सलाह दी और कई बार ऐसे क्षण आए जब मैंने अपने आपको अकेला सा महसूस किया लेकिन इसने मुझे कभी अकेलेपन का एहसास नहीं होने दिया | जब भी ऐसा टाइम आया इसको मैंने मेरे कंधे पर अपनी बाजू रखते हुए अपने साथ खड़ी पाया | मैंने कभी इससे धन की लालसा नहीं की लेकिन मेरा कोई कार्य रुका भी नहीं | बहुत समय हो गया इस साधना को किए हुए | कुछ वर्षों से बेशक मैंने इसे याद नहीं किया फिर भी कभी कभी यह खुद मुझे याद दिला ही देती है | कई बार ऐसे क्षण आए जब यह स्वयं आकर मिली एक दोस्त की तरह | यह बातें हर एक को नहीं बताई जाती क्योंकि यह साधना के निजी अनुभव होते हैं | जब मैंने यह साधना की थी तो धनदा यक्षिणी स्तोत्र जरूर करता था साथ में | तभी एक दिन एक सौन्दर्य की मूर्ति मेरे सामने अचानक आ गई और जिसे देखते ही आदमी अपने होश तक खो देता है पर मैं हमेशा इन शक्तियों से मित्रवत ही रहा हूँ और शुद्ध प्रेम पूर्ण ही रहा हूँ | बस अंत में यही कहूँगा कि जीवन में अगर प्रेम की परिभाषा समझनी है तो आप यक्षिणी का सहचर्य प्राप्त करें | सद्गुरु आपको सफलता प्रदान करें |


विधि

1.  यह साधना 21 दिन की है | 21 दिन में स्वा लाख मंत्र जप जरूरी है |

2.  इसके लिए दो सामग्री यक्षिणी यंत्र और यक्षिणी माला आप कहीं से भी प्राप्त कर सकते हैं | अगर सामग्री न हो तो इसे करने के लिए एक लाल वस्त्र पर यक्षिणी की नारी रूप की सुंदर तस्वीर बनाकर अथवा मूर्ति आदि बनाकर भी की जा सकती है | यह साधकों को सुविधा के लिए बता रहा हूँ या आप स्फटिक या पारद श्री यंत्र पर भी इसका प्रयोग कर सकते हैं | माला अगर यक्षिणी माला न हो तो लाल चन्दन की माला श्रेष्ठ रहती है |

3.  वस्त्र पीले अनसिले पहनें मतलब आप पीली धोती और पीतांबर ले सकते हैं |

4. दिशा उतर ठीक है |

5. मंत्र जप 21 दिन में स्वा लाख करना है |

6. गुरु जी और गणेश जी का पंचौपचार पूजन करें | साधना के लिए अनुमति लें फिर यक्षिणी यंत्र जो कि अपने सामने एक बाजोट पर पीला या लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करना है उसका पूजन करें | पूजन में धूप, दीप, फल,



Ruchi Sehgal