Sunday, 22 July 2018
बिना गर्भ या पिता के वीर्य के बिना जन्मे पोराणिक पात्र 3
राजा पृथु के जन्म की कथा :
पृथु एक सूर्यवंशी राजा थे, जो वेन के पुत्र थे। स्वयंभुव मनु के वंशज राजा अंग का विवाह सुनिथा नामक स्त्री से हुआ था। वेन उनका पुत्र हुआ। वह पूरी धरती का एकमात्र राजा था। सिंहासन पर बैठते ही उसने यज्ञ-कर्मादि बंद कर दिये। तब ऋषियों ने मंत्रपूत कुशों से उसे मार डाला, लेकिन सुनिथा ने अपने पुत्र का शव संभाल कर रखा। राजा के अभाव में पृथ्वी पर पाप कर्म बढऩे लगे। तब ब्राह्मणों ने मृत राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिसके फलस्वरूप स्त्री-पुरुष का जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम पृथु तथा स्त्री का नाम अर्चि हुआ। अर्चि पृथु की पत्नी हुई। पृथु पूरी धरती के एकमात्र राजा हुए। पृथु ने ही उबड़-खाबड़ धरती को जोतने योग्य बनाया। नदियों, पर्वतों, झरनों आदि का निर्माण किया। राजा पृथु के नाम से ही इस धरा का नाम पृथ्वी पड़ा।
Ruchi Sehgal
बिना गर्भ या पिता के वीर्य के बिना जन्मे पोराणिक पात्र 2
राजा सगर के साठ हजार पुत्रों के जन्म की कथा :
रामायण के अनुसार इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक प्रसिद्ध राजा हुए। उनकी दो रानियां थीं- केशिनी और सुमति। दीर्घकाल तक संतान जन्म न होने पर राजा अपनी दोनों रानियों के साथ हिमालय पर्वत पर जाकर पुत्र कामना से तपस्या करने लगे। तब महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को साठ हजार अभिमानी पुत्र प्राप्त तथा दूसरी से एक वंशधर पुत्र होगा।
कालांतर में सुमति ने तूंबी के आकार के एक गर्भ-पिंड को जन्म दिया। राजा उसे फेंक देना चाहते थे किंतु तभी आकाशवाणी हुई कि इस तूंबी में साठ हजार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में साठ हजार पुत्र प्राप्त होंगे। इसे महादेव का विधान मानकर सगर ने उन्हें वैसे ही सुरक्षित रखा। समय आने पर उन मटकों से साठ हजार पुत्र उत्पन्न हुए। जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया।
देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया। राजा सगर के साठ हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोली राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।
Ruchi Sehgal
बिना गर्भ या पिता के वीर्य के बिना जन्मे पोराणिक पात्रो की कैग
कृपाचार्य व कृपी के जन्म की कथा :
कृपाचार्य महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे। उनके जन्म के संबंध में पूरा वर्णन महाभारत के आदि पर्व में मिलता है। उसके अनुसार- महर्षि गौतम के पुत्र थे शरद्वान। वे बाणों के साथ ही पैदा हुए थे। उनका मन धनुर्वेद में जितना लगता था, उतना पढ़ाई में नहीं लगता था। उन्होंने तपस्या करके सारे अस्त्र-शस्त्र प्राप्त किए। शरद्वान की घोर तपस्या और धनुर्वेद में निपुणता देखकर देवराज इंद्र बहुत भयभीत हो गए। उन्होंने शरद्वान की तपस्या में विघ्न डालने के लिए जानपदी नाम की देवकन्या भेजी। वह शरद्वान के आश्रम में आकर उन्हें लुभाने लगी। उस सुंदरी को देखकर शरद्वान के हाथों से धनुष-बाण गिर गए। वे बड़े संयमी थे तो उन्होंने स्वयं को रोक लिया, लेकिन उनके मन में विकार आ गया था। इसलिए अनजाने में ही उनका शुक्रपात हो गया। वे धनुष, बाण, आश्रम और उस सुंदरी को छोड़कर तुरंत वहां से चल गए।
उनका वीर्य सरकंडों पर गिरा था, इसलिए वह दो भागों में बंट गया। उससे एक कन्या और एक पुत्र की उत्पत्ति हुई। उसी समय संयोग से राजा शांतनु वहां से गुजरे। उनकी नजर उस बालक व बालिका पर पड़ी। शांतनु ने उन्हें उठा लिया और अपने साथ ले आए। बालक का नाम रखा कृप और बालिका नाम रखा कृपी। जब शरद्वान को यह बात मालूम हुई तो वे राजा शांतनु के पास आए और उन बच्चों के नाम, गोत्र आदि बतलाकर चारों प्रकार के धनुर्वेदों, विविध शास्त्रों और उनके रहस्यों की शिक्षा दी। थोड़े ही दिनों में कृप सभी विषयों में पारंगत हो गए। कृपाचार्य की योग्यता देखते हुए उन्हें कुरुवंश का कुलगुरु नियुक्त किया गया।
Ruchi Sehgal