Friday, 17 August 2018
नाग पंचमी की कथाये
हमारे हिन्दू समाज में आज भी कई ऐसी पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं जिनसे व्यक्ति अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है। सर्प का नाम सुनते ही जनमानस में भयंकर भय व्याप्त हो जाता है। सर्प को काल (मृत्यु) का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है। सर्पदंश होने पर आज भी ग्रामीण अंचल में झाड़-फूंक आदि सहारा लिया जाता है, जो सर्वथा गलत है। सर्पदंश जैसी विकट परिस्थिति में झाड़-फूंक व टोने-टोटके करने के स्थान पर शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक के पास जाना चाहिए।
बहरहाल, आज हम प्राचीन समय में प्रचलित एक परंपरा के बारे में 'वेबदुनिया' के पाठकों को अवगत कराएंगे। आपने यदा-कदा घरों की बाहरी दीवार पर 'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य लिखा देखा होगा। ग्रामीण अंचलों में इस वाक्य को घर की बाहरी दीवार पर लिखा हुआ देखना आम बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस वाक्य को घर के बाहरी दीवारों पर क्यों लिखा जाता है? यदि नहीं, तो आज हम आपको इसकी पूर्ण जानकारी देंगे।
'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य घर की बाहरी दीवारों पर सर्प से सुरक्षा के लिए लिखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वाक्य को घर की दीवार पर लिखने से उस घर में सर्प प्रवेश नहीं करता।
इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है। कलियुग के प्रारंभ में जब ऋषि पुत्र के श्राप के कारण राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया, तो इससे उनकी मृत्यु हो गई। जब यह बात राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को पता चली तो उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए इस संसार से समस्त नाग जाति का संहार करने के लिए 'सर्पेष्टि यज्ञ' का आयोजन किया। इस 'सर्पेष्टि यज्ञ' के प्रभाव के कारण संसार के कोने-कोने से नाग व सर्प स्वयं ही आकर यज्ञाग्नि में भस्म होने लगे।
इस प्रकार नाग जाति को समूल नष्ट होते देख नागों ने आस्तिक मुनि से जाकर अपने संरक्षण हेतु प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आस्तिक मुनि ने नागों को बचाने से पूर्व उनसे एक वचन लिया कि जिस स्थान पर नाग उनका नाम लिखा देखेंगे, उस स्थान में वे प्रवेश नहीं करेंगे और उस स्थान से 100 कोस दूर रहेंगे।
नागों ने अपने संरक्षण हेतु आस्तिक मुनि को जब यह वचन दिया तब आस्तिक मुनि ने जन्मेजय को समझाया। आस्तिक मुनि के कहने पर जन्मेजय ने 'सर्पेष्टि यज्ञ' बंद कर दिया। इस प्रकार आस्तिक मुनि के हस्तक्षेप के कारण नाग जाति का आसन्न संहार रुक गया।
इस कथा के अनुसार ही ऐसी मान्यता प्रचलित है कि आस्तिक मुनि को दिए वचन को निभाने के लिए आज भी सर्प उस स्थान में प्रवेश नहीं करते, जहां आस्तिक मुनि का नाम लिखा होता है। इस मान्यता के कारण ही अधिकांश लोग सर्प से सुरक्षा के लिए अपने घर की बाहरी दीवार पर लिखते हैं- 'आस्तिक मुनि की दुहाई।'
जन्म-कुंडली में बिज़नेस योग
जन्म-कुंडली में बिज़नेस योग :-
कुंडली में कर्म (कार्य) का स्थान दसवां भाव होता है। अगर किसी व्यक्ति का दसवां भाव मजबूत और अच्छा है तो उस व्यक्ति का बिज़नेस अच्छा चलने की संभावना ज्यादा रहती हैं। इसके साथ ही दशमांशा भी देखा जाना चाहिए | युति,डिग्री,दृष्टि,दशा बिज़नेस में लाभ और हानि को दर्शाते हैं | किसी एक भाव या एक ग्रह से अंतिम परिणाम पर नहीं पहुंचा जा सकता | कुंडली को हमेशा पूर्ण -रूप से ही देखा जाना चाहिए |
कुंडली के योग जो व्यक्ति के व्यवसाय को सफल बनाने में मदद करते हैं :-
१)अगर कुंडली के कर्म स्थान में ब्रहस्पति बैठा हो (जो भाग्य का मालिक होता है) तो यह केंद्रादित्य योग बनता है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह योग होता है तो उस व्यक्ति का व्यवसाय अच्छा चलता है।
२)अगर कर्म स्थान पर बुध या सूर्य की दृष्टी हो या इन ग्रहों में से कोई ग्रह कर्म के स्थान (दसवें भाव) में विराजमान हो तो यह लक्ष्मी-नारायण योग बनता है। इस प्रकार के जातकों को व्यवसाय में लाभ प्राप्त होने के अवसर ज्यादा प्राप्त होते हैं।
३)जातक की जन्म कुंडली में अगर मंगल उच्च का होकर कर्म भाव में विराजमान है तो ऐसे व्यक्ति को व्यवसाय के अच्छे संयोग बन जाते हैं।
४)कुंडली के केंद्र में अगर कहीं भी गुरू और सूर्य या चंद्रमा और गुरु की युक्ति बन रहा हो तो इस योग का सीधा प्रवाह कर्म को जाता है। इस योग में जातक का बिज़नेस अच्छा चलता है और उसे सभी प्रकार की सुख-सुविधायें प्राप्त होती हैं।
५)ब्रहस्पति, सूर्य या मंगल इन शुभ ग्रहों में से किसी की भी सातवीं दृष्टी अगर दसवें भाव पर हो तब भी कर्म भाव में अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता रहता है।
६)राहू भी अगर कर्मभाव की तरफ देखता है या कर्म भाव में उच्च का होकर विराजमान हो तो यह भी योग व्यवसाय के लिए अच्छा माना जाता है। बेशक शनि, राहू और केतु अशुभ ग्रह माने जाते हैं किन्तु कई बार योग के कारण यह ग्रह कर्म भाव अच्छे फल प्रदान कर देते हैं।
जातक की जन्म कुंडली को देखकर यह बताया जा सकता है कि क्या आप अपना व्यवसाय शुरू कर सकते हो | या वह उत्तम समय कब आयेगा जब आप अपना कोई काम प्रारंभ कर सकते हैं |
विवाह में बाधा/देरी : जन्म-कुंडली के योग
विवाह में बाधा/देरी : जन्म-कुंडली के योग :
जन्म कुंडली का सातवां भाव विवाह, पत्नी, भागीदारी एवं गुप्त व्यापार का कहा गया है। सातवां भाव यदि पाप ग्रहों द्वारा देखा जाता है उसमें अशुभ योग पड़े हैं तो विवाह में विलंब होगा। कन्या की कुंडली में विवाह कारक बृहस्पति होता है और पुरूष की कुंडली में विवाह का विचार शुक्र से किया जाता है। यदि दोनों ग्रह शुभ हों और उनपर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो विवाह का योग जल्दी बनता है। विवाह देरी से कराने में बहुत से ग्रह कारक होते हैं। यह ध्यान में रखना चाहिए कि पुरुषों के लिए पत्नी कारक ग्रह शुक्र है जबकि स्त्रियों के लिए पति कारक ग्रह बृहस्पति है। मांगलिक दोष में चाहे पुरुष हो या स्त्री दोनों का विवाह विलंब से होता है।
विवाह में बाधा का कारण निम्नलिखित हैं :-
1. शनि, सूर्य या मंगल सप्तमस्थ होने के कारण विवाह में बाधा आती है।
2. यदि किसी कन्या की कुंडली में सप्तम भाव में मंगल, शनि व शुक्र के साथ युति कर रहा हो तो कन्या का विवाह बड़ी उम्र में होता है।
3. यदि कन्या की कुंडली में लग्न में मंगल, सूर्य व बुध हो और गुरु द्वादश भाव में हो तो कन्या का विवाह देरी से होता है।
4. यदि कुंडली में शनि व सूर्य पारस्परिक दृष्टि संबंध रखते हों व लग्न या सप्तम भाव प्रभावित हो रहा हो तो विवाह की संभावनाएं बहुत कम होती हैं।