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Friday, 17 August 2018

कुंडली और धन संचय

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कैसे करें धन का संचय
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हर मेहनत  करने वाला व्यक्ति
धनी नहीं होता  
धन कमाना जितना मुश्किल है उतना ही मुश्किल है धन को सम्हालना, धन की बचत करके संचित करना
धन  को सहेजने के  कुछ सूत्र :

कुंडली में  मंगल, बुद्ध और  शनि अगर शुभ प्रभाव में हो तो अतुल धन देते  हैं लेकिन अगर ये जन्मपत्रीका में   कमजोर  हों, पीड़ित हों तो पूर्वजों द्वारा अर्जित धन भी नष्ट हो जाता है  मंगल कमजोर हो तो जातक धन कमा सकता  है जोड़ नहीं सकता                                      **********************************
शनि बली हो तो जातक अपनी मेहनत से धनी होता है
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अगर  शुभ बुध का साथ भी मिल जाये हो तो जातक अपनी सूझ बूझ से धन कमाता है 
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कुंडली में धन कमाने के लिए नवम यानी(9) भाग्य स्थान और ग्यारवा (11) स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है
और धन संचय के लिए(2) दूसरा स्थान होता है अगर ये भाव किसी भी प्रकार से कमज़ोर हो यानी शनि मंगल राहु / केतु से द्रस्तिगत व पीडित और या इनमें बैठे शुभ ग्रह भी पीडित हो तो धन की स्थिती मज़बूत नही होती हम  धन कमा तो सकते है मगर जुड़ नही पाता आगे के खर्च तैयार मिलते है पर अगर इनकी स्थिती मज़बूत है तो जीवन में अधिक संघर्ष नही करना पड़ता और धन जुड़ता रहता है व्यक्ति अच्छा जीवन जीता है
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किस क्षेत्र में नौकरी या  व्यापार करने से धन प्राप्त होगा ये दशम भाव और दशम भाव में स्थित ग्रह  बताते और उसकी शुभ /अशुभ स्थिती और उस पर अन्य ग्रहों के प्रभाव से जानकारी मिलती  है जैसे :-

सूर्य बली दशम भाव में हो और  छठे  भाव का सम्बन्ध आ जाये तो जातक सरकारी               नौकरी से धन  कमाता है, मंगल हो तो जातक सेना व  पुलिस या प्रशासन में नौकरी करता है 
अगर अन्य ग्रहों का योग हो तो जातक मेडिकल, इलेक्ट्रॉनिक सम्बन्धी और , प्रॉपर्टी आदि का व्यापार करता है

बुध हो तो एकाउंट्स,  कॉमर्स,कम्युनिकेशन बेंकिंग,  ब्रोकर और लेखन से धन कमाता है,

गुरु हो तो वकालत, सलाहकार,  शिक्षण,आदि से धनार्जन होता है 

शुक्र हो तो व्यापार, कला, सौंदर्य प्रसाधन, स्त्रियों से संबंधित  सामान आदि से सम्बंधी काम करता है

शनि हो तो बिल्डर्स, लोहा, तेल मशीनरी प्रॉपर्टी बिल्डिंग मेटीरियल  इत्यादि से धन कमाता है  राहु केतु का साथ में होना धनार्जन में कमी करता है
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धन संचय के उपाय : किसी भी हालत में कुंडली में कष्टकारी व खराब ग्रहों कें दोष कें लिऐ उपाय करें  अन्यथा कितना भी धन  कमायेंगे पर धन रुकेगा नहीं
घर कें बुजुर्गों का अपमान न करें अगर वे अपमान के दौर में शारीर छोड़ जाएँ तो भयंकर पितृ दोष लगता है और कई पीढ़ियों तक धन संचय  नहीं होता ईश्वर में आस्था रखें अच्छे समय होने पर अहंकार से व बुरी आदतों से बचे क्योंकि समय एक जैसा नही रहता ! 

प्रतिदिन अपने पूर्वजों से अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगे और आगे कोई गलत काम न करने की प्रतिज्ञा करें , सरकारी नौकरी में हों तो सूर्य को रोज़ाना जल दें,
घर में तुलसी लगाएं,
जन्मपत्रीका में अगर शनि राहु  पीडित हो तो  शिव मंदिर मे 21 शनिवार को  100 ग्राम साबुत बादाम  दान करें ,और  भगवान शिव की रोज़ उपासना करे व शाम को पीपल पर दीप दान कर शनि भगवान से छमा मांगे कुष्ठ , अपंग व्यक्तियों को समय समय पर कुछ खाने की सामग्री दान करते रहें  व अन्य पीड़ित ग्रहों का पता लगाकर  उनका उपाय करें लाभ होगा


चन्द्र और मंगल ग्रह

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आज द्विग्रही योग में बात करते है चन्द्र और मंगल ग्रह के बारे में..!!
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चन्द्र-मंगल:--जिन जातकों की कुंडली मे चन्द्र-मंगल का योग हो वे जातक बुद्धिमान, परिश्रमी, कुछ तीक्ष्ण स्वभाव, अपने धर्म एवं नियमों का पालन करने वाला, साहसी एवं कुशल वक्ता, कैमिकल, चर्म, धातु, शिल्प आदि एवं तकनीकी कार्यो में कुशल, क्रय-विक्रय, एवं व्यापार द्वारा अच्छा धनार्जन करने में सफल होता है।
सरकारी या प्राइवेट जॉब में भी हो तो एक से अधिक साधनों द्वारा धन लाभ प्राप्त करने में कुशल होते है।
यह योग तृतीय, पंचम, नवम, दशम, एवं ग्यारहवे भावो में हो तो अच्छा फलप्रद होता है।
दशम में चन्द्र-मंगल का योग होने से उच्चाधिकारी या सेनाध्यक्षकर्ता भी हो सकते है।
प्रथम, चतुर्थ, एवं सप्तम भावो में इसका फल अच्छा नही कहा जा सकता है।
इसके अतिरिक्त यह योग मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुम्भ, व मीन लग्नो में विशेष प्रशस्त माना जाता है।
शेष अन्य लग्नो में साधारण फल देखने को मिलता है..!!


नाग पंचमी की कथाये

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हमारे हिन्दू समाज में आज भी कई ऐसी पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं जिनसे व्यक्ति अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है। सर्प का नाम सुनते ही जनमानस में भयंकर भय व्याप्त हो जाता है। सर्प को काल (मृत्यु) का प्रत्यक्ष स्वरूप माना जाता है। सर्पदंश होने पर आज भी ग्रामीण अंचल में झाड़-फूंक आदि सहारा लिया जाता है, जो सर्वथा गलत है। सर्पदंश जैसी विकट परिस्थिति में झाड़-फूंक व टोने-टोटके करने के स्थान पर शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक के पास जाना चाहिए।
बहरहाल, आज हम प्राचीन समय में प्रचलित एक परंपरा के बारे में 'वेबदुनिया' के पाठकों को अवगत कराएंगे। आपने यदा-कदा घरों की बाहरी दीवार पर 'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य लिखा देखा होगा। ग्रामीण अंचलों में इस वाक्य को घर की बाहरी दीवार पर लिखा हुआ देखना आम बात है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस वाक्य को घर के बाहरी दीवारों पर क्यों लिखा जाता है? यदि नहीं, तो आज हम आपको इसकी पूर्ण जानकारी देंगे।
'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य घर की बाहरी दीवारों पर सर्प से सुरक्षा के लिए लिखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वाक्य को घर की दीवार पर लिखने से उस घर में सर्प प्रवेश नहीं करता।

इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा है। कलियुग के प्रारंभ में जब ऋषि पुत्र के श्राप के कारण राजा परीक्षित को तक्षक नाग ने डस लिया, तो इससे उनकी मृत्यु हो गई। जब यह बात राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को पता चली तो उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए इस संसार से समस्त नाग जाति का संहार करने के लिए 'सर्पेष्टि यज्ञ' का आयोजन किया। इस 'सर्पेष्टि यज्ञ' के प्रभाव के कारण संसार के कोने-कोने से नाग व सर्प स्वयं ही आकर यज्ञाग्नि में भस्म होने लगे।
इस प्रकार नाग जाति को समूल नष्ट होते देख नागों ने आस्तिक मुनि से जाकर अपने संरक्षण हेतु प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आस्तिक मुनि ने नागों को बचाने से पूर्व उनसे एक वचन लिया कि जिस स्थान पर नाग उनका नाम लिखा देखेंगे, उस स्थान में वे प्रवेश नहीं करेंगे और उस स्थान से 100 कोस दूर रहेंगे।

नागों ने अपने संरक्षण हेतु आस्तिक मुनि को जब यह वचन दिया तब आस्तिक मुनि ने जन्मेजय को समझाया। आस्तिक मुनि के कहने पर जन्मेजय ने 'सर्पेष्टि यज्ञ' बंद कर दिया। इस प्रकार आस्तिक मुनि के हस्तक्षेप के कारण नाग जाति का आसन्न संहार रुक गया।
इस कथा के अनुसार ही ऐसी मान्यता प्रचलित है कि आस्तिक मुनि को दिए वचन को निभाने के लिए आज भी सर्प उस स्थान में प्रवेश नहीं करते, जहां आस्तिक मुनि का नाम लिखा होता है। इस मान्यता के कारण ही अधिकांश लोग सर्प से सुरक्षा के लिए अपने घर की बाहरी दीवार पर लिखते हैं- 'आस्तिक मुनि की दुहाई।'