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Thursday, 8 November 2018

महाभारत के दो सबसे शक्तिशाली कित्नु सबसे अपमानित पात्र

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महाभारत में दो पात्र हैं जिन्हें बिना किसी  किसी भी गलती के भी सदैव अपमान   तिरस्कार प्राप्त हुआ। 

एक है द्रौपदी । उसके पास पांच पति  थे - फिर भी रक्षा के लिए कोई नहीं, उसके पांच बेटे थे - फिर भी युद्ध समाप्ति के बाद कोई भी जीवित नहीं।  द्रौपदी एक राजकुमारी , जिसके पिता ने सदैव द्रोपदी का इस वजह से तिरस्कार किया क्युकी वह एक पुत्र चाहते थे परन्तु उन्हें द्रोपदी के रूप में  कन्या प्राप्त हुई।  

 दूसरा कर्ण है। वह कभी भी अपने भाइयों के लिए भाई नहीं था और कुंती के सबसे बड़े बेटे होने के बावजूद एक सूत  के पुत्र होने के लिए उसे द्रौपदी के स्वयंवर  में द्रौपदी द्वारा अपमानित किया गया था। कर्ण के कवच भी कृष्णा द्वारा छल से ले लिए गए।  और छल से ही कर्ण को मारा गया। 

द्रौपदी एक अतयंत सुन्दर राजकुमारी थी  जिस के कारन प्रत्येक राजकुमार और राजा उस से विवाह करना चाहता था। द्रोपदी के भरी सभा मे सभी बड़े बुजुर्ग , गुरु और पिता समान व्यक्तियों के आगे अपमानित किया गया और उसे निर्वस्त्र  करने की कोशिश की गई।  यह सब उसके पतियों की  आँखों के सामने हुआ कित्नु वह कुछ न कर सके।  उनमे से एक भी द्रोपदी के मान और सम्म्मान के लिए न  सका न शास्त्र उठा सका।  अतयंत सुन्दर, राजकुमारी, होने के बाद भी भरी राजसभा मे  ऐसा अपमान। 


कर्ण, जिसका जन्म कुंती ने दिया परन्तु लोक लाज के डर से उस जीवित पुत्र को नदी मे  बहा दिया।  कारण जिसे सर्व शक्तिशाली ब्रह्माश्त्र की विद्या  गुरु परशुराम द्वारा प्रदान की गई परन्तु साथ ही परशुराम ने उसे श्राप भी दे दिया के यह विद्या मुसीबत के वक्त उसे  याद नहीं आएगी।  सूर्य पुत्र होने के कारन उसे सूर्य द्वारा कवच और कुण्डल प्राप्त हुए लेकिन इंद्रा ने छल द्वारा यह उस से ले लिए।  कारण जो के  दानवीर था परन्तु इसी दान शीलता को कर्ण की कमजोरी बनाकर इंद्रा ने साधु के वेश मे आकर उस से यह कवच और कुण्डल दान मे मांग लिए। पांचो पांडवो से अधिक शक्तिशाली और समर्थ होने के बावजूद उसे द्रोपदी ने स्वयंवर में  सूत पुत्र कहकर प्रतियोगिता से बाहर कर दिया।  

 वास्तव मे इन्ही दो पात्रो का अपमान और हीनभावना ही महाभारत की युद्ध की मुख्या वजह बानी।  

इस कथा के बाद स्त्री चाहेगी के उसे दुर्योधन जैसा पति मिले

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कर्ण के अंग देश का राजा बनने पश्चात्  अपना अधिकांश समय दुर्योधन के साथ बिताया। वे ज्यादातर शाम को दुर्योधन के साथ चौसर का खेल खेलते थे ।  एक दिन सूर्यास्त के बाद, दुर्योधन को क्षणिक रूप से कही जाना पड़ा। भाग्यवश उनकी पत्नी भानुमती, जो उस वक्त वही से गुज़र रही थी उसने देखा के कर्ण चौसर के समीप बैठा है और दुर्योधन के वापिस लौटने की प्रतीक्षा कर  रहे है।  इसे मई उसके मन मै ख्याल आया के क्यों न वह अपने पति दुर्योधन के तरफ से खेल खेलना जारी कर दे।  और जैसे ही उसने चौसर खेलने के इच्छा व्यक्त करि वैसे ही कर्ण ने भानुमति को सहमति प्रदान करि और खेल खेलना पुनः शुरू कर दिया। 

अचानक खेल खेल मैं किसी बिंदु पर उनके बीच  एक अनौपचारिक झगड़ा होने लगा और दोनों ही स्वयं को सही कह कर बहस करने लगे। इसी बहस के बीच कर्ण ने पासा को भानुमति के हाथ से छीनने की कोशिश की। पर अचानक से पैसा छीनने की कोशिश मे  भानुमती की चुनरी नीचे गिर गई और साथ ही भानुमति के गले का हार ( मोती का हार ) टूट गया। पुरे फर्श पर हर जगह मोती बिखर गए । 
उसी पल अचानक दुर्योधन ने कक्ष में प्रवेश किया और उसने अपनी पत्नी को अर्ध वस्त्र में तथा अपने प्रिये मित्र कर्ण को अपनी पत्नी  के साथ संदेहस्पदाक स्थिति मे देखा।  यु अचानक दुर्योधन को सामने देखकर भानुमति और कर्ण दोनों ही खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगे के जैसे मानो अभी दुर्योधन दोनों को दण्डित करेगा। उस वक्त भानुमति और कर्ण के वस्त्र आपस मे  उलझे हुए थे और फर्श पर चारो तरफ मोती ही मोती बिखरे हुए थे। 
 
दुर्योधन दोनों के चेहरों पर घबराहट और शर्मिंदगी अचे से देख रहा था  परन्तु उसने स्थिति को हलके से लिया और माहौल  हुए पूछा के क्या हुआ आप दोनों आपस मे  क्यों लड़ रहे थे।  कारण जानने के बाद उन्होंने एक मजाक उड़ाया और जोर से हँसे और कहा के वह दोनों खेलना जारी रखे यदि उसे मालूम होता के आप दोनों  उपस्थिति मई खेलना ही चोर देंगे तो वह बिना बताये कक्ष मे नहीं आता। 

बाद में, जब भानुमती ने दुर्योधन से पूछा कि उन्हें संदेह क्यों नहीं था, उन्होंने जवाब दिया, "एक संबंध में संदेह के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, क्योंकि जब संदेह होता है तो कोई संबंध नहीं होगा। कर्ण मेरा सबसे अच्छा दोस्त है और तुम मेरी अर्धांगिनी ,  मैं उस पर भरोसा करता हूं  और तुम पर भी।  तथा मुझे पूर्ण विशवास है के तुम दोनों मेरा विश्वास कभी नहीं तोड़ोगे। 

Wednesday, 7 November 2018

क्या वास्तव मे इस्लाम धर्म मे नारी की स्थिति दयनीय है

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इस दुनिया के सभी धर्म और धर्म प्रचारको का मुख्यत एक ही प्रमुख उद्देश्य रहा है वो है प्रेम, सद्भावना और भाईचारे को बढ़ाना और द्वेष , क्रोध और लालच को कम करना।

इस्लाम धर्म का उदय अरब मे हुआ। इस्लाम के आने से पूर्व वह की ओरतो की स्थिति बहित दयनीय थी। ज्यादातर लोग तो लड़की के पैदा होते ही उसे मार दिया करते थे क्योंकि उस वक्त जो भी शक्तिशाली समूह या व्यक्ति होता था वह लड़की के बड़े होने पर उसे जबरन उठा ले जाते थे जिस वजह से लोग लड़की होना यानी बदनामी की वजह मानते थे।
लोग ताकत और लड़ाई के बल पर 200 ओरतो से भी शादी किया करते थे या बिना शादी के ही उन्हें खुद के ऐशो और हवस के लिए इस्तमाल किया करते थे । कई बार पिता की बीवियों को , पिता के देहांत के बाद उनके पुत्र खुद शादी कर लिया करते थे। तो स्त्री को न तो जीवनसाथी चुनने का अधिकार था, न शादी से इनकार करने का और न ही उन्हें किसी प्रकार की जायदाद या सम्पदा रखने का अधिकार प्राप्त था वास्तव मई उस वक्त स्त्री और जानवर की स्थिति मे कोई फर्क नहीं था

परन्तु इस्लाम के आने से उन्हें अपना जीवनसाथी स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार दिया गया। और हर स्त्री को यह अधिकार प्राप्त हुआ के वह यदि चाहे को शादी से इनकार करे या कबूल करे।

उन्हें तलाक की स्थिति मे हक़ मेहर देना भी इस्लाम मे जरुरी कर दिया गया ताकि वह तलाक के बाद भी अपना जीवन निर्वाह कर सके।

और साथ ही पुरषो पे भी 4 शादियों से अधिक शादियों पे पाबन्दी लगाई गई
इसके आलावा इस्लाम में एक औरत जो की माँ हो उसका स्थान पिता से तीन पायदान ऊपर है, इस्लाम मे माँ का स्थान सब रिश्तों मे पहला है और दूसरा और तीसरा  स्थान भी माँ को ही दिया गया ताकि माँ के महत्त्व को सबसे ऊपर रखकर बताया जा सके।

यदि उस समय के परिपेक्षव को देकग जाए तो वास्तव मे  इस्लाम के आने से औरत की स्थिति मजबूत हुई हलाकि यह केवल अरब के बारे मई कहा जा सकता है क्योंकि भारत और बाकी के दुनिया में अलग अलग धर्म में औरत को अलग अलग तरह से इज्जत दी गई है

भारत इस्लाम धर्म का हिस्सा, बहुविवाह प्रथा और तलाक प्रथा का विरोध करता है कययकि तलाक उर्दू शब्द है और हिन्दू धर्म में कही भी तलाक के जैसा कुछ शब्द या स्थिति नहीं कही गई है। वाही बहुविवाह प्रचलन का भी हिन्दू लोग विरोध करते है क्योंकि श्री राम यदि एक पत्नी संग निर्वाह कर सकते है तो साधारण मनुष्य को भी ऐसा करना चाहिए