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Friday, 1 September 2017

पेट दर्द के घरेलु उपाय

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पेट दर्द के घरेलु उपाय 
1.पेट दर्द मे हींग का प्रयोग करने से पेट दर्द ठीक हो जाता है । 2 ग्राम हींग को पानी में पीसकर पेस्ट बना ले । नाभी और उसके आस-पास यह पेस्ट लगाने से पेट दर्द से निजात मिलती है।

2. अजवाइन को तवे पर सेककर काले नमक के साथ पीसकर पाउडर बनाएं। 4-5  ग्राम गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार लेने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।

3. जीरे को तवे पर सेक कर  और 4-5 ग्राम गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार लें। इसे चबाकर खाने से भी पेट दर्द ठीक हो जाता है।

4. पुदिने और नींबू का रस 1-1  चम्मच लें और 1 /2 चम्मच अदरक का रस और थोडा सा काला नमक मिलाकर दिन में 3 बार लेने से पेट दर्द में से छुटकारा मिलता है।

5. सूखी अदरक मुंह में रखकर चूसने से भी पेट दर्द ठीक होता है।

6. अदरक का रस नाभी स्थल पर लगाने और हल्की मालिश करने से पेट दर्द में आराम मिलता है।

7. पेट दर्द  में थोड़ा सा मीठा सोडा डालकर पीने से पेट दर्द ठीक हो जाता है।

 8. भुना हुआ जीरा, काली मिर्च, सौंठ, लहसून, धनिया, हींग सूखी पुदीना पत्ती,सबको बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना ले और थोडा काला नमक भी मिलाएं। खाने के बाद एक चम्मच थोड़े से गर्म पानी के साथ लें। पेट दर्द में आराम मिलता है।

9. एक चम्मच शुद्ध घी में हरे धनियें का रस मिलाकर लेने से पेट के रोग ठीक होते हैं |

10. अदरक का रस और अरंडी का तेल मिलाकर दिन में 3 बार 1 चमच्च लेने से पेट दर्द ठीक होता है।

11. अदरक का रस 1 चम्मच, नींबू का रस 2 चम्मच लेकर थोडी सी शक्कर मिलाकर लेने से पेट दर्द में लाभ होगा। दिन में 2-3 बार ले सकते हैं।

12. अनार के बीज निकाल कर थोडी मात्रा में नमक और काली मिर्च का पाउडर डालें। और दिन में दो बार लेने से पेट दर्द में आराम मिलता है|

श्री सूर्य चालीसा

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श्री सूर्य चालीसा

दोहा

कनक बदन कुंडल मकर, मुक्ता माला अंग।

पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।

 

चौपाई

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।

भानु, पतंग, मरीची, भास्कर, सविता, हंस, सुनूर, विभाकर।

 

विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन।

अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।

 

सहस्रांशु, प्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।

अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़‍ि रथ पर।

 

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।

उच्चैश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

 

मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता,

सूर्य, अर्क, खग, कलिहर, पूषा, रवि,

 

आदित्य, नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै।

द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।

 

चार पदारथ सो जन पावै, दुख दारिद्र अघ पुंज नसावै।

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।

 

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

 

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।

छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।

 

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देश पर दिनकर छाजत।

 

भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।

ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।

 

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।

पूषा बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।

 

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।

 

जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।

 

सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।

अस जोजजन अपने न माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।

 

दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मन मंह जापै।

अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

 

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।

मन्द सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।

 

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों, दूर हटत सो भव के भ्रम सों।

 

परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदय।

 

भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।

यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।

 

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

 

दोहा

 

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।

सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।

श्री वीरभद्र चालीसा

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श्री वीरभद्र चालीसा

|| दोहा || 

वन्‍दो वीरभद्र शरणों शीश नवाओ भ्रात ।

ऊठकर ब्रह्ममुहुर्त शुभ कर लो प्रभात ॥

 

ज्ञानहीन तनु जान के भजहौंह शिव कुमार।

ज्ञान ध्‍यान देही मोही देहु भक्‍ति सुकुमार।
 

|| चौपाई ||

 

जय-जय शिव नन्‍दन जय जगवन्‍दन । जय-जय शिव पार्वती नन्‍दन ॥

 

जय पार्वती प्राण दुलारे। जय-जय भक्‍तन के दु:ख टारे॥

 

कमल सदृश्‍य नयन विशाला । स्वर्ण मुकुट रूद्राक्षमाला॥

 

ताम्र तन सुन्‍दर मुख सोहे। सुर नर मुनि मन छवि लय मोहे॥

 

मस्‍तक तिलक वसन सुनवाले। आओ वीरभद्र कफली वाले॥

 

करि भक्‍तन सँग हास विलासा ।पूरन करि सबकी अभिलासा॥

 

लखि शक्‍ति की महिमा भारी।ऐसे वीरभद्र हितकारी॥

 

ज्ञान ध्‍यान से दर्शन दीजै।बोलो शिव वीरभद्र की जै॥

 

नाथ अनाथों के वीरभद्रा। डूबत भँवर बचावत शुद्रा॥

 

वीरभद्र मम कुमति निवारो ।क्षमहु करो अपराध हमारो॥

 

वीरभद्र जब नाम कहावै ।आठों सिद्घि दौडती आवै॥

 

जय वीरभद्र तप बल सागर । जय गणनाथ त्रिलोग उजागर ॥

 

शिवदूत महावीर समाना । हनुमत समबल बुद्घि धामा ॥

 

दक्षप्रजापति यज्ञ की ठानी । सदाशिव बिन सफल यज्ञ जानी॥

 

सति निवेदन शिव आज्ञा दीन्‍ही । यज्ञ सभा सति प्रस्‍थान कीन्‍ही ॥

 

सबहु देवन भाग यज्ञ राखा । सदाशिव करि दियो अनदेखा ॥

 

शिव के भाग यज्ञ नहीं राख्‍यौ। तत्‍क्षण सती सशरीर त्‍यागो॥

 

शिव का क्रोध चरम उपजायो। जटा केश धरा पर मार्‌यो॥

 

तत्‍क्षण टँकार उठी दिशाएँ । वीरभद्र रूप रौद्र दिखाएँ॥

 

कृष्‍ण वर्ण निज तन फैलाए । सदाशिव सँग त्रिलोक हर्षाए॥

 

व्‍योम समान निज रूप धर लिन्‍हो । शत्रुपक्ष पर दऊ चरण धर लिन्‍हो॥

 

रणक्षेत्र में ध्‍वँस मचायो । आज्ञा शिव की पाने आयो ॥

 

सिंह समान गर्जना भारी । त्रिमस्‍तक सहस्र भुजधारी॥

 

महाकाली प्रकटहु आई । भ्राता वीरभद्र की नाई ॥

 

 

|| दोहा ||

 

आज्ञा ले सदाशिव की चलहुँ यज्ञ की ओर ।

वीरभद्र अरू कालिका टूट पडे चहुँ ओर॥