Friday, 8 March 2019
रावण की पत्नी मंदोदरी ने क्यों किया विभीषण से विवाह? Mandodari marries to vibhishana
पुलस्त्य ऋषि के पुत्र और महर्षि अगस्त्य के भाई महर्षि विश्रवा ने राक्षसराज सुमाली और ताड़का की पुत्री राजकुमारी कैकसी से विवाह किया था। कैकसी के तीन पुत्र और एक पुत्री थी- रावण, कुम्भकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा। विश्रवा की दूसरी पत्नी ऋषि भारद्वाज की पुत्री इलाविडा थीं जिससे कुबेर का जन्म हुआ।
रावण ने दिति के पुत्र मय की कन्या मंदोदरी से विवाह किया, जो हेमा नामक अप्सरा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी। विरोचन पुत्र बलि की पुत्री वज्रज्वला से कुम्भकर्ण का और गन्धर्वराज महात्मा शैलूष की कन्या सरमा से विभीषण का विवाह हुआ था।
भगवान शिव के वरदान के कारण ही मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था। मंदोदरी ने भगवान शंकर से वरदान मांगा था कि उनका पति धरती पर सबसे विद्वान ओर शक्तिशाली हो। मंदोदरी श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर में भगवान शिव की आराधना की थी, यह मंदिर मेरठ के सदर इलाके में है जहां रावण और मंदोदरी की मुलाकात हुई थी। रावण की कई रानियां थी, लेकिन लंका की रानी सिर्फ मंदोदरी को ही माना जाता था।
पंच कन्याओं में से एक मंदोदरी को चिर कुमारी के नाम से भी जाना जाता है। अपने पति रावण के मनोरंजनार्थ मंदोदरी ने ही शतरंज के खेल का प्रारंभ किया था। मंदोदरी से रावण को पुत्र मिले- अक्षय कुमार, मेघनाद और अतिकाय। महोदर, प्रहस्त, विरुपाक्ष और भीकम वीर को भी उनका पुत्र माना जाता है।
एक कथा यह है कि रावण की मृत्यु एक खास बाण से हो सकती थी। इस बाण की जानकरी मंदोदरी को थी। हनुमान जी ने मंदोदरी से इस बाण का पता लगाकर चुरा लिया जिससे राम को रावण का वध करने में सफलता मिली। सिंघलदीप की राजकन्या और एक मातृका का भी नाम मंदोदरी था। हालांकि जनश्रुतियों के अनुसार मंदोदरी मध्यप्रदेश के मंदसोर राज्य की राजकुमारी थीं। यह भी माना जाता है कि मंदोदरी राजस्थान के जोधपुर के निकट मन्डोर की थी।
क्यों किया मंदोदरी ने विभिषण से विवाह?
जब रावण सीता का हरण करके लाया था तब भी मंदोदरी ने इसका विरोध कर सीता को पुन: राम को सौंपने का कहा था। लेकिन रावण ने मंदोदरी की एक नहीं सुनी और रावण का राम के साथ भयंकर युद्ध हुआ। ऐसा माना जाता है कि राम-रावण के युद्ध एक मात्र विभिषण को छोड़कर उसके पूरे कुल का नाश हो गया था।
रावण की मृत्यु के पश्चात रावण के कुल के विभिषण और कुल की कुछ महिलाएं ही जिंदा बची थी। युद्ध के पश्चात मंदोदरी भी युद्ध भूमि पर गई और वहां अपने पति, पुत्रों और अन्य संबंधियों का शव देखकर अत्यंत दुखी हुई। फिर उन्होंने प्रभु श्री राम की ओर देखा जो आलौकिक आभा से युक्त दिखाई दे रहे थे।
श्रीराम ने लंका के सुखद भविष्य हेतु विभीषण को राजपाट सौंप दिया। अद्भुत रामायण के अनुसार विभीषण के राज्याभिषेक के बाद प्रभु श्रीराम ने बहुत ही विनम्रता से मंदोदरी के समक्ष विभीषण से विवाह करने का प्रस्ताव रखा, साथ ही उन्होंने मंदोदरी को यह भी याद दिलाया कि वह अभी लंका की महारानी और अत्यंत बलशाली रावण की विधवा हैं। कहते हैं कि उस वक्त तो उन्होंने इस प्रस्ताव पर कोई उत्तर नहीं दिया।
जब प्रभु श्रीराम अपनी पत्नीं सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ वापस अयोध्या लौट गए तब पीछे से मंदोदरी ने खुद को महल में कैद कर लिया और बाहर की दुनिया से अपना संपर्क खत्म कर लिया। कुछ समय बाद वह पुन: अपने महल से निकली और विभीषण से विवाह करने के लिए तैयार हो गई।
लेकिन मंदोदरी के बारे में इस बात पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल है। क्योंकि मंदोदरी एक सती स्त्री थी जो अपने पति के प्रति समर्पण का भाव रखती थी ऐसे में मंदोदरी का विभिषण से विवाह करना अपने आप में हैरान करने वाली घटना है। हालांकि रामायण से इतर की रामायण में ऐसे ही कई अजीब किस्से हैं। यह भी सोचने में आता है कि कुछ समाजों में प्राचीन काल में ऐसा ही प्रचलन था। सुग्रीव ने भी बालि के मारे जाने के बाद उसकी पत्नीं से विवाह कर लिया था।
मंदिर जहा होती है कुत्तो की पूजा , Mandir jaha kutto ki puja
आज तक हमने कई मंदिरों के बारे में सुना है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जहां पर भगवान की जगह एक कुत्ते की पूजा की जाती है। इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर खपरी गांव में स्थित है।
आज तक हमने कई मंदिरों के बारे में सुना है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है जहां पर भगवान की जगह एक कुत्ते की पूजा की जाती है। इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के रायपुर से करीब 132 किलोमीटर दूर खपरी गांव में स्थित है। 200 मीटर में फैले इस मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की मूर्ति स्थापित है और उसके पास ही एक शिवलिंग है। यहां के लोगों की मान्यता है कि कुकुरदेव के दर्शन करने से ना ही कुकुरखांसी होती है और ना ही किसी कुत्ते का खतरा होता है। बताया जाता है कि इस मंदिर को एक वफादार कुत्ते के याद में बनाया गया था।
कहा जाता है कि सदियों पहले इस गांव में एक परिवार आया था। जिनके साथ एक कुत्ता भी था। गांव में एक बार अचानक से अकाल पड़ गया। तो उस परिवार ने गांव के साहूकार से कर्ज ले लिया। लेकिन समय पर वह कर्ज वापस नहीं कर पाया। इस वजह से उसने अपने कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रख दिया। इसी दौरान एक दिन साहूकार के घर में चोरी हो गई और चोरों ने सारा माल चुराकर जमीन के नीचे गाड़ दिया। लेकिन इस बात की भनक कुत्ते को लग गई। वो साहूकार को उस जगह पर लेकर जहां पर चोरों ने माल गाड़ा था जब साहूकार ने जमीन खोदी तो वहां पर उसे अपना सारा माल वापस मिल गया।
कुत्ते की वफादारी देख साहूकार ने उसे आजाद करने का फैसला किया और उसके गले में एक चिट्ठी डाल कर अपने मालिक पास भेज दिया। कुत्ते को आता देख उसके मालिक ने सोचा की यह साहूकार के पास से भाग कर आया है इस वजह से उसने कुत्ते की पिटाई कर दी। जिससे कुत्ते की मौत हो गई लेकिन बाद में मालिक ने उसके गले में लटकी चिट्ठी पढ़ी। इसके बाद मालिक को काफी पछतावा हुआ है उसने बाद में वहां पर कुत्ते के याद में एक स्मारक बनवा दिया जो आज एक मंदिर के रूप में जाना जाता है।
Monday, 25 February 2019
नींव, खनन, भूमि पूजन एवम शिलान्यास मुहूर्त
किसी भी कार्य को करने के लिए समय व तिथी का निर्धारण किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में शुभ मुहूर्त का बहुत ही महत्व है । यह वैसा ही है जैसे किसी भी फसल का बीज डालने के लिए उचित समय व मौसम को देखा जाता है। कोई भी फसल तभी पूरी तरह से प्रफुल्लित होती है जब उस फसल को उसके मौसम में बोया जाता है। इसी प्रकार शुभ मुहूर्तों का भी बहुत ही महत्व है। नींव, खनन, शिलान्यास, भूमि पूजन आदि के लिए पंचाग को देखकर शुभ मुहूर्त निकाले जाते हैं। इन्हीं शुभ मुहूर्तों को मुख्या आधार मानकर धार्मिक व शुभ कार्य किए जाते हैं।
1. नींव, खनन, शिलान्यास, भूमि पूजन के लिए शुभ तिथियां
2. भूमि पूजन के लिए 2018 में तिथियां व समय
3. नींव, खनन, शिलान्यास, भूमि पूजन के लिए 2019 में शुभ तिथियां
4. नींव, खनन, शिलान्यास, भूमि पूजन के लिए 2020 -2021 में शुभ तिथियां
5. लैंटर,छत डालना, इलैक्ट्रिक वायरिंग और स्तम्भ खड़े करने काल में पंचक नक्षत्रों का विचार
6 गृह निर्माण आदि के लिए शुभ मुहूर्तों की जानकारी
नींव शिलान्यास एवम गृह निर्माण आदि के शुभ मुहूर्त में गृह स्वामी की राशि की अनुकूलता देखकर नीचे बताए गए शुभ मुहूर्त में वास्तु पूजन, नवग्रह शान्ति, होम यज्ञ आदि करके, शिलान्यास, नींव भरण, गृहारम्भ निर्माण शुरु करना चाहिए। निर्माण में 5,7,9,14,21 व 24 प्रवृष्ठों में भूमि शयन, सुप्त भूमि का भी विचार किया जाता है। सूर्य नक्षत्र 5,7,9,12,19 एवम 26वें चन्द्र नक्षत्र पर भी भूमि शयन का विचार किया जाता है। जरूरी मूहूर्त में दिए गए सूर्यभात वृष चक्र का भी प्रयोग कर सकते हैं। लैंटर,छत डालना, इलैक्ट्रिक वायरिंग और स्तम्भ खड़े करने काल में पंचक नक्षत्रों व अग्रि बाण का भी विचार कर लेना उचित होगा।
2018
27 अप्रैल को 14.01 बजे के बाद, 30 अप्रैल को 10.22 बजे तक, 10 मई को 10.58 तक, 12 मई को सारा दिन, 16 जून को11.36 से 14.46 तक, 22जून 2018 को 11.11बजे तक, 6 जुलाई को 9.34 के बाद,14 जुलाई को चन्द्र दान, पुष्य नक्षत्र सारा दिन,18 जुलाई को सुबह 8.20 तक शुभ मूहूर्त रहेगा। 19 जुलाई को 7.53 के बाद, 23 जुलाई को 12.53 तक, 2 अगस्त को 13.13 के बाद, 3 अगस्त को 19.14 तक, 4 अगस्त को 12.59 तक, 6 अगस्त को 14.8 के बाद, 27 अगस्त को सारा दिन, 29 अगस्त को सुबह 9.10 तक, 3 सितम्बर को सारा दिन, 7 सितम्बर को 9.13 तक, 12 सितम्बर को 8.53 तक, 15 सितम्बर को सारा दिन, 13 दिसम्बर 2018 को
नींव आदि के लिए सारा दिन शुभ मुहूत्र्त रहेगा।
2019 में नींव, खनन, भूमि पूजन एवम शिलान्यास मुहूर्त
19 अप्रैल को 11.32 बजे तक , 29 अप्रैल को 8.09 से 8.49 बजे तक, 6 मई को 16.37 के बाद , 9 मई को 15.17 के बाद , 10 मई को को 8.36 तक, 24 मई 2019 को 12.07 के बाद, 25 मई को सारा दिन,30 मई को सारा दिन,31 मई को सारा दिन सारा दिन, 6 जून को को सुबह 9.55 तक शुभ मूहूर्त रहेगा। 12 जून को 11.51 के बाद, 13 जून को 6.38 के बाद, 27 जून को 5.44 के बाद, 28 जून को को 9.12 तक, 3 जुलाई को 6.36 के बाद 11.42 तक, 12 जुलाई को 15.57 के बाद, 13 जुलाई को सारा दिन, 18 अक्तूबर को सुबह 7.29 के बाद, 30 अक्तूबर को सारा दिन, 8 नवम्बर 12.25 के बाद, 14 नवम्बर को,18 नवम्बर को10.41 के बाद, 23 नवम्बर को, 2 दिसम्बर को 11.43 बजे तक, 11 दिसम्बर 2019 को 10.59 बजे के बाद इसके बाद 12 दिसम्बर को मुहूर्त रहेगा।
2020 में नींव, खनन, भूमि पूजन एवम शिलान्यास मुहूर्त
16 जनवरी , 27 जनवरी को मुहू्र्त रहेगा इसके बाद 30 जनवरी को 15.12 बजे के बाद रहेगा । 31 जनवरी को इसके बाद 26 फरवरी को रहेगा। 2 मार्च 2020 में 13.56 के बाद मुहूर्त रहेगा। इसके बाद 11 मार्च को मुहूर्त रहेगा 18 अप्रैल 2020 , 4 मई, 15 जून, 17 जून प्रात 6.04 बजे तक, 8 जुलाई 9.19 बजे तक, 9 जुलाई, 17 जुलाई (शुक्र परिहार), 27 जुलाई 11.04 बजे के बाद , 29 जुलाई 8.33 बजे के बाद, 6 अगस्त11.18 तक, 21 अगस्त, 19 अक्तूबर, 12 नवम्बर, 20 नवम्बर, 25 नवम्बर, 3द नवम्बर, 10 दिसम्बर 2020 को मुहूर्त रहेगा। माघ,फाल्गुन में गुरु अस्त रहने के कारण इन माह में कोई शुभ मुहूर्त नहीं है।
यह जानकारी आपको सिर्फ जानने के लिए ही प्रदान की जा रही है। पक्के तौर पर अपने स्थान आदि के अनुसार वास्तु जानकार से ही आप विमर्श करके शुभ मुहूर्त आदि का पता कर लें। इसके लिए आप पंडित जी से भी विचार-विमर्श कर सकते हैं।
यह जानकारी आपको सिर्फ जानने के लिए ही प्रदान की जा रही है। पक्के तौर पर अपने स्थान आदि के अनुसार वास्तु जानकार से ही आप विमर्श करके शुभ मुहूर्त आदि का पता कर लें। इसके लिए आप पंडित जी से भी विचार-विमर्श कर सकते हैं।