Jeevan dharam

Krishna sakhi is about our daily life routine, society, culture, entertainment, lifestyle.

Tuesday, 22 May 2018

स्तम्भन क्रिया की सिद्धियाँ और क्रियाएं

No comments :

स्तम्भन क्रिया की सिद्धियाँ और क्रियाएं (बगलामुखी सिद्धि)
तंत्र मन्त्र सिद्धि साधना


स्तम्भन को माया स्तम्भन भी कहते है। माया शरीर के सम्पूर्ण चक्र को कहा जाता है। स्तम्भन यानी जड़ता और इसमें माया अर्थात सम्पूर्ण अस्तित्त्व की क्रियाओं का स्तम्भन होता है। इसकी आवश्यकता तन्त्र साधना में दुष्ट गतिविधियों के स्तम्भन हेतु की जाती है; ताकि साधना कार्य में वे विघ्न न डालें।



स्तम्भन की क्रिया के लिए भी किसी देवी-देवता की एक सिद्धि होनी आवश्यक है। यहाँ हम बगलामुखी की सिद्धि बलता रहे है –



मन्त्र – ॐ ह्रीं श्रीं बगला मुखी श्रीं ह्रीं ॐ स्वाहा ।

यंत्र – अष्टदल कमल की कर्णिका में षट्कोण के मध्य अधोमुखी त्रिकोण में बिंदु।

समय – ब्रह्म मुहूर्त , प्रातःकाल सूर्योदय के समय, रात्रि में महाकाल रात्रि

दीपक – घी का दीपक, कपास की बाती

वस्त्र-आसन  – पीला रेशमी या सूती

जप संख्या – एक लाख (दिनों में बाँटकर)

हवन – कटहल, गूलर, गम्भार या गाय के कंडे की समिधा में घृत, जौ, पीले चवल, पीले फूल, हल्दी, मधु, दूध, धी, आदि से; दस हजार मन्त्रों से ।

ध्यानरूप – तीन नेत्रों वाली यह देवी, गंभीर, रोबीली, सौन्दर्य और यौवन से भरी, नेत्रों में मादकता, सोने के समान पीली चमकती कायावाली है और ये कमल पर आसीन है। इनके चार हाथ है। दाई और मुदगर और गदा(ऊपर नीचे), बायीं और शत्रु की जीभ और वज्र है(ऊपर नीचे), यह उन्मत यौवनमयी है और पीले रंग के वस्त्रों तथा सोने के गहनों से सुसज्जित है। इनके कपाल पर अर्द्ध चन्द्र है और ये सोने के सिंघासन पर रखे कमल पर बैठी है। कमल का वर्ण भी स्वर्णिम है।



नोट – स्तम्भन के लिए मेखलायुक्त त्रिकोण त्रिभुजाकार कुंड का प्रयोग किया जाता है।

यह सिद्धि सभी प्रकार की क्रियाओं में प्रशस्त है।



विद्वेषण क्रिया और सिद्धियाँ

इसकी आधारभूत देवी डाकिनी एवं उच्चिष्ठ चाण्डालिनी को माना जाता है।

डाकिनी मन्त्र – ऐ स ह क्लहीं ह्रीं श्रीं हूँ स्त्रीं छ्रीं फ्रें क्लीं क्रीं फ्रें क्रोन डाकन्ये नमः

समय – महाकाल रात्रि; दिशा – दक्षिण; वस्त्र काला; आसन काला ( या गहरा खूनी लाल); स्थान – श्मसान , हवन सामग्री – चिता की अग्नि में स्वयं के बाल, रक्त, उल्लू के पंख, चर्बी-मांस-मदिरा। फूल-लाल-नीला ।





यह मंत्र एक लाख जपने से सिद्ध होता है।



Ruchi Sehgal

मोहिनी विद्या के नुक्से

No comments :

इन नुस्खों को कार्यान्वित करते समय अपने ईष्ट का वास्तविक ध्यान होने पर ये काम करते है-



चिता भस्म के साथ विदारी कंद , वट की जटा, मदार का दूध – तीन घंटे तक खरल में घोंटे। इसमें से तिलक लगाने पर साधक की दृष्टि जिससे मिलती है, वह वशीभूत हो जाता है।
पुष्य नक्षत्र के समय पुनर्नवा की जड़ एवं रूद्र दंती की जड़ लाकर जौ के साथ हाथ में बाँधने पर व्यक्ति जहाँ जाता है, उसे आदर मिलता है।
वायु में उड़कर आया पत्ता, मजीठ, अर्जुन की छाल, तगर को समान मात्रा में मर्दन करके (12 घंटा) भोजन एवं पेय में देने पर वह व्यक्ति देने वाले के प्रति वशीभूत होता है।
श्मशान की महानीली की जड़ की बत्ती से (कूटकर रूई में मिलाकर) चमेली के तेल में दीपक जलाकर काजल बनाये। इसे आँखों में आंजने पर जिससे नजर मिले , वह वशीभूत होता है।
स्त्री के रज से भींगे वस्त्र को बरगद के पेड़ के निच्चे जलाकर, उस राख को धतूरे के रस में 7 घंटा मर्दन करने पर गोली बनाकर कर रहे लें। इसे घिसकर तिलक लगाने या किसी पुरुष को खिलाने पर वशीभूत होता है।
अपने वीर्य में अपामार्ग की जड़ , धतूरे की जड़, हरताल घोंट कर किसी स्त्री को 25 ग्राम खिला देने पर वशीकरण होता है।
बरगद की जटा, इसका दूध, मोरपंख, गोरोचन मिलाकर सात घंटे घोटे। इसका तिलक लगाने पर वशीकरण होता है।
उल्लू का ह्रदय, गौरैया की आंखे, अगर, तगर, अपना रक्त, रक्त चन्दन, लाल कनेर के फूल – समान मात्रा में लेकर 12 घंटे घोंटे। घोटते समय इसमें आक का दूध डालते रहे। यह 30 ग्राम की मात्रा में खिलाने या इसका तिलक करने से वशीकरण होता है।
पुष्य नक्षत्र में धतूरे का फूल, भरणी में फल, विशाखा में पत्ते, हस्त में भी पत्ते, मूल में मूल लाये और छाया में सुखा कर कपूर, गोरोचन, केशर के साथ 6 घंटे घोंटे (मदार के दूध में) इसका तिलक लगाने पर अरुधन्ती के सामान कामिनी भी वश में में हो जाती है।
तालमखाना, कौंच, शतावरी, गोखुरू, अनिचारी, खरेंटी, पेठे की जड़, अकरकरा , गोखरू, – इन्हें चूर्ण करके वस्त्र से छाने। इस चूर्ण को शीशे के साफ़ बर्त्तन में रखें। इसका 10 ग्राम सुबह- 10 ग्राम शाम गाय के दूध के साथ सेवन करनेवाला एक महीने में कामनियों के मन को जीतने वाला (रति में) हो जाता है।
पुष्य , नक्षत्र में सफ़ेद आक की जड़ लाकर लाल तागे से कमर में बांधे। इसे बांधकर जिस स्त्री से एक बार रमण करें, वह साधक के वश में हो जाती है।
कैथ का रस, लालकमल, पीपल, मुलहठी – इसे समान भाग में पीसकर शहद में मिलाकर परस्पर जननेद्रियों पर लेप करके रति क्रीड़ा करने पर (आधा घंटा लगाकर कर हल्का पोंछ लें) स्त्री-पुरुष में प्रेम बना रहता है।
कबूतर की बीट, सेंधानमक , शहद में घोंटकर लिंग पर लेप करके रमण करने से वह कामिनी सदा वश में रहती है। सारे शरीर पर लेप करने से सम्मोहन होता है।
मैनसिल (शोधित), गोरोचन, केसर समान लेकर 6 घंटा घोंटे। इसके तिलक से जो संपर्क में आता है, वशीभूत होता है।
सफ़ेद अपराजिता की जड़ गोरोचन को पीसकर तिलक लगाने से भी सभी वशीभूत होते है।
गोदंती, हरताल, काक जंघा – समान मात्रा में 6 घंटा घोंटे। इसके चूर्ण को किसी के सिर की कॉक पर डालने से और कुछ देर तक रहने से वह वशीभूत होता है।
अपने रक्त या वीर्य या राज के साथ गोरोचन .10 की मात्रा में किसी को खिलाने पर वह वशीभूत होता है।
सहदेई की जड़ को कमर में बंधकर रमण करने से स्त्री वश में रहती है।



Ruchi Sehgal

सफल पुजा के नियम

No comments :

पूजा प्रारंभ करने से पहले का काम

मेंटली उसके प्रति गंभीर होना यानी सच में चाहना कि हम करना चाहते है।
यदि सूर्योदय से एक घंटा पहले उठ सकते है; तो बहुत अच्छा, नहीं तो उठने का निश्चित टाइम फिक्स कीजिये।
उठने के बाद गर्दन को ऐंठ मरोड़कर और कमर पर हाथ रखकर कंधे को बाएँ-दायें –आगे-पीछे मोड़कर शारीरिक शिथिलता को दूर कीजिये।
रात में ताम्बे के लोटे में एक लीटर पानी रखें और क्रमांक 3 करने के बाद जितना पी सकते है, उसे पी जाएँ।
शौचादि से निवृत होकर सारे शरीर को ऊपर से नीचे (मस्तक से तलवों तक) पीली मिट्टी या हमारे मोहिनी पैक मंगवाकर , जो 21 जड़ी बूटियों के संयोग से निर्मित है, खूब मल-मलकर ‘ॐ अस्त्राय फट’ मंत्र का जप करें। इसके सुख जाने पर नार्मल टेम्परेचर के जल से स्नान करें।
जल स्नान के समय नियम बाद में कुछ देर जल की धारा को चाँद पर गिराना है और आँखें मूँद का उस पानी की धारा को ऊर्जा धारा के रूप में अनुभूत करना है। यह कल्पना करना है कि शिव की गंगा शीर्ष पर गिरकर ऊर्जा धारा के रूप में सारे विकार धोती जा रही है। यह मात्र दो –तीन मिनट का काम है।
ढीले वस्त्र पहनकर पूजा में बैठे । पहले गुरु का ध्यान करके उसके बाद केवल मानसिक पूजन करें। एक ही ईष्ट की पूजा , जैसे आप करते है और केवल ५ मिनट उनका ध्यान ह्रदय में करके उनके मंत्र या प्रार्थना का जप करें। प्रणाम करके उठ जाए। एक बार फिर याद रखें। ईष्ट केवल एक ही होना चहिये एयर सोचना चहिये कि वे हमारे ह्रदय में विद्यमान है। फिर वे प्रकाशित होते हुए विकसित हो रहे है। इसके अंत में वह प्रकाश रूप समस्त शरीर में व्याप्त हो जाता है। इसमें समय लगता है , पर जब केंद्र में ईष्ट की ज्योति स्थापित हो जाती है, चमत्कारिक अनुभूतियाँ उसी समय से प्रारम्भ हो जाती है। कुछ स्त्रियों में अलौकिक शक्तियां भी लुकाछिपी करने लगती है। समस्त शरीर में प्रकाश व्याप्त होने पर वे गुण भी स्थायी हो जाते है।
रात में सोते समय सिर के चाँद और खोपड़ी में नारियल या शुद्ध सरसों या बादाम या जैतून या कद्दू के बीज का तेल डाले। सुगन्धित तेल न डालें। हो सके तो कान, नाभि आदि शरीर के समस्त छिद्रों को इससे पूरित करें। सुबह चाहे मिट्टी लगाने से पहले अच्छे शैम्पू से इसे धो लें।
खाने-पीने एवं आचरण सम्बन्धी कोई वर्जना नहीं है। इसका मानक है कि जो सरलता से पच जाए, जो मस्तिष्क को भ्रमित या अवसादित न करें और शरीर को क्षति न पहुंचाए।
अपने ह्रदय में अपने ईष्ट को धारण करके स्वयं को वही समझे। समझें कि केंद्र में उनकी ज्योति है और वही आपका अस्तित्त्व या जीवन है। इस भाव को सदा बनाएं रखें। इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह ईष्ट कौन है। गुरु, देवता, देवी, शिव, भैरव, राम या कृष्ण या कोई भी शक्ति। मुस्लिम महिला अल्लाह को वहां स्थापित करें , इसाई ईसा को। प्रत्येक को चमत्कारी लाभ मिलेगा। यह प्रकृति का स्वाभविक नियम है।
यह नियम है कि आप नेगेटिव पैदा कीजिये, पॉजिटिव अपने आप पैदा होगा।शरीर को तांत्रिक स्नान से शुद्ध करके; जब हृदय में कोई भी भाव प्रकाशित होता है; तो वह नाभिक यानी सूर्य की ऊर्जा का प्राकृतिक समीकरण बदल देता है। वह उस भाव के समीकरण में प्रसारित होने लगता है। भाव जितना गहरा होता जाएगा, प्रकाश बढ़ता जाएगा। ऊर्जा का स्वरुप सूक्ष्म होता चला जाएगा। अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति का कारण सूक्ष्म ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसका पॉजिटिव वातावरण में बनता है और शरीर में समाता रहता है। यह केंद्र को और प्रकाशित कर देता है। यह एक चेन सिस्टम बना लेता है।
नारियों को लाभ जल्दी मिलता है। इसलिए कि अपनी रूचि में केन्द्रित हो जाने कि उसमें प्रवृति होती है, संभवतः नेगेटिव होने के कारण । मार्ग का मानसिक भाव जल्दी केन्द्रित नहीं होता। विश्वास और धीरज का अन्तर भी इसका कारण होता है।
पर पुरुषों के लिए भी यदि वह पूजा-साधना करता है, यही सूत्र है। करके देखें। तब पता चेलगा कि हमारे देवी-देवता या आपके ईष्ट केवल आस्था हैं या एक विचित्र विज्ञान की शक्तियाँ ।

विशेष –

तलवों पैरों को साफ रखें। इसमें क्रीम आदि भी न लगायें। कोमलता चाहती है, तो मदिरा या पेट्रोल में ब्रश भिंगोकर पैर तलवों को साफ़ करें।विशेष कर सोते समय।
हाथों एवं हथेलियों को भी साफ़ करें। पेट साफ़ रखें। कब्ज हो तो एरंड का तेल गर्म पानी या दूध में रात में 20 ग्राम की मात्रा में पीये। इससे पहले तीन ग्राम हर्रे + 1 ग्राम सेंधा नमक का चूर्ण खा लें। पहले चूर्ण निगल लें , तब दूध या पानी पीयें।
हफ्ते में एक बार शरीर पर सर्वत्र सरसों , नारियल , बादाम, मूंगफली , जैतून – इसमें से किसी एक से मालिश करें।
महीने में एक बार घर के आँगन में ईष्ट देवता के अनुसार दिन में या रात में हवन करें। उसी मन्त्र से जो जपते है। इससे उस घर की सभी नेगेटिव शक्तियां दूर भागत



Ruchi Sehgal