बहुत ही पुरानी कथा है, दैत्य गुरु शुक्राचार्य की बेटी देवयानी का विवाह किया महाराजा नहुष के पुत्र ययाति से हुआ था, और इस तरह से नहुष के बाद ययाति राजा बने, लेकिन, विवाह के पहले शुक्राचार्य ने सख्त हिदायत दी थी कि, मेरी बेटी के अलावा किसी से भी तुम सम्बन्ध नही रखोगे, और दोनों का जीवन सुखमय भी व्यतीत हो रहा था किंतु, देवयानी की दासी शर्मिष्ठा जोकि दानव वंश से थी वो इतनी सुन्दर थी की ययाति उस पर रीझे हुए थे, एक दिन शर्मिष्ठा कुएँ में गिर गई तो उसे निकाला ययाति ने और अपने प्रेम का कर इजहार कर दिया, लेकिन कहते हैं, कि, इश्क व मुश्क छुपाये नहीं छुपता है, लेकिन शुक्राचार्य की वजह से दोनों खुल के सामने नहीं आ सके, ऐसे में ययाति ने शर्मिष्ठा से छुपकर के विवाह कर लिया, लेकिन एक दिन देवयानी ने ही देख ही लिया दोनों को प्रेमालाप करते, तब उसने अपने पिता से शिकायत की और पिता शुक्राचार्य ने ययाति को तुरंत ही वृद्ध होने का श्राप दे डाला किन्तु जब देवययानी ने अनुनय विनय की तो शुक्राचार्य को दया आ गई और, कहा कि अगर तुम्हे कोई अपनी जवानी दे तो तुम उसे भोग सकते हो अन्यथा ऐसे ही रहोगे।
ययाति के पांच पुत्र थे उनमे से चार पड़े पुत्रो से जब पिता ने पूछा तो उन्होंने साफ मना कर दिया पर छोटे बेटे पुरू ने बाप का दर्द सुना और उनको अपनी जवानी देने के लिए तैयार हो गया, तब वर्षों तक ययाति ने यौवन भोगा और जब चैतन्य जागा तो बड़े चार बेटो को राज्य से बेदखल कर दिया और श्राप दिया की तुम और तुम्हारे वंशज कभी भी अपने बाप के बनाये राज में राज नही कर सकोगे ( मतलब अगर पिता राजा है तो बेटे को दूसरा राजवंश बनाना पड़ेगा उसका बेटा उसका राज नही सम्हाल सकेगा ), जबकि पुरू को राजा बनाया, इसी पुरू के नाम से आगे जाकर पुरू वंश कहलाया, जिसके वंशज पांडव हुए और बाकि, चारों भाइयों का वंश यदुवंश कहलाया, जिसके वंशज नंद हुए और यह सत्य भी है, वासुदेव भी अपने राज्य के राजा न बन सके, एवं कंस के वध के बाद देवकी के पिता उग्रसेन जी राजा बनाये गए और तब कृष्ण मथुरा के राजा बने कृष्णजी की मौत के बाद उनके वंशज लड़ पड़े और कोई राजा न बन सका, सिर्फ वज्र बचा जिसे द्वारका के डूबने के बाद मथुरा का महाराज बनाया गया अर्जुन के द्वारा।
ययाति के पांच पुत्र थे उनमे से चार पड़े पुत्रो से जब पिता ने पूछा तो उन्होंने साफ मना कर दिया पर छोटे बेटे पुरू ने बाप का दर्द सुना और उनको अपनी जवानी देने के लिए तैयार हो गया, तब वर्षों तक ययाति ने यौवन भोगा और जब चैतन्य जागा तो बड़े चार बेटो को राज्य से बेदखल कर दिया और श्राप दिया की तुम और तुम्हारे वंशज कभी भी अपने बाप के बनाये राज में राज नही कर सकोगे ( मतलब अगर पिता राजा है तो बेटे को दूसरा राजवंश बनाना पड़ेगा उसका बेटा उसका राज नही सम्हाल सकेगा ), जबकि पुरू को राजा बनाया, इसी पुरू के नाम से आगे जाकर पुरू वंश कहलाया, जिसके वंशज पांडव हुए और बाकि, चारों भाइयों का वंश यदुवंश कहलाया, जिसके वंशज नंद हुए और यह सत्य भी है, वासुदेव भी अपने राज्य के राजा न बन सके, एवं कंस के वध के बाद देवकी के पिता उग्रसेन जी राजा बनाये गए और तब कृष्ण मथुरा के राजा बने कृष्णजी की मौत के बाद उनके वंशज लड़ पड़े और कोई राजा न बन सका, सिर्फ वज्र बचा जिसे द्वारका के डूबने के बाद मथुरा का महाराज बनाया गया अर्जुन के द्वारा।
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