॥ श्रीकालिकाकवचम् २ ॥
श्रीसदाशिव उवाच -
कथितं परमं ब्रह्म प्रकृतेः स्तवनं महत् ।
आद्यायाः श्रीकालिकायाः कवचं शृणु साम्प्रतम् ॥ १॥
त्रैलोक्यविजयस्यास्य कवचस्य ऋषिः शिवः ।
छन्दोऽनुष्टुब्देवता च आद्या काली प्रकीर्तिता ॥ २॥
मायाबीजं बीजमिति रमा शक्त्तिरुदाहृता ।
क्रीं कीलकं काम्यसिद्धौ विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ३॥
ह्रीमाद्या मे शिरः पातु श्रीं काली वदनं मम ।
हृदयं क्रीं परा शक्त्तिः पायात्कण्ठं परात्परा ॥ ४॥
नेत्रे पातु जगद्धात्री कर्णौ रक्षतु शङ्करी ।
घ्राणं पातु महामाया रसनां सर्वमङ्गला ॥ ५॥
दन्तान् रक्षतु कौमारी कपोलौ कमलालया ।
ओष्ठाधरौ क्षमा रक्षेच्चिबुकं चारुहासिनी ॥ ६॥
ग्रीवां पायात्कुलेशानी ककुत्पातु कृपामयी ।
द्वौ बाहू बाहुदा रक्षेत्करौ कैवल्यदायिनी ॥ ७॥
स्कन्धौ कपर्दिनी पातु पृष्ठं त्रैलोक्यतारिणी ।
पार्श्वे पायादपर्णा मे कटिं मे कमठासना ॥ ८॥
नाभौ पातु विशालाक्षी प्रजस्थानं प्रभावती ।
ऊरू रक्षतु कल्याणी पादौ मे पातु पार्वती ॥ ९॥
जयदुर्गावतु प्राणान्सर्वाङ्गं सर्वसिध्दिदा ।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन च ॥ १०॥
तत्सर्वं मे सदा रक्षेदाद्या काली सनातनी ।
इति ते कथितं दिव्यं त्रैलोक्यविजयाभिधम् ॥ ११॥
कवचं कालिकादेव्या आद्यायाः परमाद्भुतम् ।
पूजाकाले पठेत्यस्तु आद्याधिकृतमानसः ॥ १२॥
इति महानिर्वाणतन्त्रे सप्तम उल्लासे ५५-६६ श्लोकपर्यन्तं
श्रीकालिकाकवचम् सम्पूर्णम् ।
॥ श्रीकालिकाकवचम् २ ॥ shri kaalikaa kavacham 2
shrIsadAshiva uvAcha
kathitaM paramaM brahma prakR^iteH stavanaM mahat |
AdyAyAH shrIkAlikAyAH kavachaM shR^iNu sAmpratam || 1||
trailokyavijayasyAsya kavachasya R^iShiH shivaH |
Chando.anuShTubdevatA cha AdyA kAlI prakIrtitA || 2||
mAyAbIjaM bIjamiti ramA shakttirudAhR^itA |
krIM kIlakaM kAmyasiddhau viniyogaH prakIrtitaH || 3||
hrImAdyA me shiraH pAtu shrIM kAlI vadanaM mama |
hR^idayaM krIM parA shakttiH pAyAtkaNThaM parAtparA || 4||
netre pAtu jagaddhAtrI karNau rakShatu sha~NkarI |
ghrANaM pAtu mahAmAyA rasanAM sarvama~NgalA || 5||
dantAn rakShatu kaumArI kapolau kamalAlayA |
oShThAdharau kShamA rakShechchibukaM chAruhAsinI || 6||
grIvAM pAyAtkuleshAnI kakutpAtu kR^ipAmayI |
dvau bAhU bAhudA rakShetkarau kaivalyadAyinI || 7||
skandhau kapardinI pAtu pR^iShThaM trailokyatAriNI |
pArshve pAyAdaparNA me kaTiM me kamaThAsanA || 8||
nAbhau pAtu vishAlAkShI prajasthAnaM prabhAvatI |
UrU rakShatu kalyANI pAdau me pAtu pArvatI || 9||
jayadurgAvatu prANAnsarvA~NgaM sarvasidhdidA |
rakShAhInaM tu yatsthAnaM varjitaM kavachena cha || 10||
tatsarvaM me sadA rakShedAdyA kAlI sanAtanI |
iti te kathitaM divyaM trailokyavijayAbhidham || 11||
kavachaM kAlikAdevyA AdyAyAH paramAdbhutam |
pUjAkAle paThetyastu AdyAdhikR^itamAnasaH || 12||
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