जानिए क्यों किया सीता जी ने स्वयं कुम्भकरण के पुत्र का वध
रावण का अंत तथा विभीषण को लंका का राजा घोषित कर श्रीराम अयोध्या वापिस आ चुके थे। एक दिन की बात है। उनके पास विभीषण पहुंचे। वह रावण के छोटे भाई थे। उन्होंने प्रभु राम से कहा, 'कुंभकर्ण का एक पुत्र मूलकासुर था, जो मूल नक्षत्र में पैदा हुआ था। तब उसे वन में रहने भेज दिया था। जहां उसे मधुमक्खियों ने पाल-पोस कर बढ़ा किया था।
लेकिन अब वो वापिस आ गया है। और मुझे मारकर अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहता है। मैंने उसके साथ लगभग 6 माह तक युद्ध किया लेकिन अंततः उसकी विजयी हुई। तब मैं किसी तरह आपके पास न्याय के लिए मौजूद हुआ हूं।'
श्रीराम ने यह व्यथा सुन, अपने पुत्र लव-कुश और भाई लक्ष्मण से कहा, 'आप तुरंत सेना तैयार करें, हम लंका पुनः कूच, करेंगे।' इस तरह श्रीराम पुष्पक विमान से लंका की ओर चल निकले। जब मूलकासुर को पता चला कि श्रीराम आ रहे हैं तब वह अपनी सेना के साथ युद्ध के लिए रणभूमि में पहुंच गया।
दोनों तरफ से युद्ध सात 7 तक चलता रहा। जो भी घायल होता उसे हनुमानजी संजीवनी बूटी से स्वस्थ करते लेकिन युद्ध मूलकासुर की तरफ से भारी दिख रहा था। तब चिंतित होकर श्रीराम ने एक वृक्ष के नीचे बैठकर ब्रह्मा जी का ध्यान किया।
ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने श्रीराम से कहा, 'हे राम मैंने मूलकासुर को किसी स्त्री के हाथ मृत्यु का वरदान दिया है। मूलकासुर का वध सीता जी ही कर सकती हैं।'
तब श्रीराम ने युद्ध भूमि में लाने को हनुमानजी और विनतानंदन गरुड़ को सीता जी को युद्ध भूमि में लाने के लिए भेजा। सीता जी वहां पहुंची तो उन्होंने चंडिकास्त्र चलाकर मूलकासुर का वध कर दिया।
No comments :
Post a Comment